दादा गुरुदेव के व्यक्तिव के गुणों को अपने जीवन में लाने का प्रयास करना चाहिए – विशुद्ध सागर जी म.सा.
आज पर्वाधिराज पर्युषण पर्व का है दूसरा दिन
धमतरी। परम पूज्य विशुद्ध सागर जी म.सा. ने अपने आज के प्रवचन में फरमाया कि आज पर्वाधिराज पर्युषण पर्व का दूसरा दिन है। ज्ञानी भगवंत कहते है पर्व के दिन संकरे अर्थात छोटे है। पर्युषण पर्व एक ऐसा लोकोत्तर पर्व है जो आत्मा के विकास के लिए है। आठ दिनों के इस पर्व में आरंभ समारंभ आदि का पूर्णत: त्याग करना चाहिए। इन आठ दिनों में अपना पूरा समय आराधना-साधना, तप-त्याग आदि में लगाना चाहिए। आत्मा की औषध है पौषध। पौषध आत्मा के निकट आने का माध्यम है। इस तप में हम कम से कम चार प्रहर के लिए छ: काय के जीवों को सूक्ष्म रूप में अभयदान देते है। भव भव के भ्रमण को दूर करने का ये सुअवसर मिला हैं हमे परमात्मा की दया को प्राप्त करने का प्रयास करना है। जीवन में राग,आग के समान है। अपनी आत्मा को इस राग से बचाना है। क्योंकि राग अर्थात मोह ही सारे पापो का कारण है। आज दूसरे दादा गुरुदेव मणिधारी दादा श्री जिनचंद्र सूरी जी म.सा. की 858वी पुण्यतिथि है। माता देल्हन देवी पिता रासल के आंगन में विक्रमपुर नगर में भादवा सुदी आठम के दिन उनका जन्म हुआ था। आज हमे दादा गुरुदेव के व्यक्तिव को देखते हुए अपने जीवन में उनके गुणों को लाने का पुरुषार्थ करना है। ये एक ऐसे व्यक्तित्व के धनी थे जिन्होंने कभी अपने शरीर की चिंता नही की। आपके गुरुदेव ने आपसे कहा था। कभी दिल्ली की ओर प्रस्थान मत करना। नही तो आपका आयु क्षीण होने लगेगा। छ: साल की उम्र में उनकी दीक्षा संपन्न हुई और आठ साल की उम्र में उनकी विशेष योग्यता के कारण आचार्य बन गए। और केवल 28 साल की उम्र में उनका देवलोक गमन हो गया था। दिल्ली के राजा मदनपाल के बार बार निवेदन करने पर धर्म प्रभावना की अपेक्षा से वे दिल्ली पधारे। अपने अंतिम समय में उन्होने संघ को बताया था की उनकी अर्थी को कही बीच में न रोका जाए तथा अंत में उनके मस्तिष्क के समक्ष एक दूध का कटोरा लेकर खड़े रहे ताकि उनके मस्तक में जो मणि है उसमे आ जाए। इसके प्रभाव से जैन धर्म की खूब प्रभावना होगी। गुरुदेव का भादवा बदी चौदस अर्थात आज के दिन ही देवलोक गमन हो गया और इस दुख के कारण संघ ये दोनो बाते भूल गया। अर्थी को बीच में रोक दिया गया। उसके बाद बहुत प्रयास किया गया लेकिन वो अर्थी वहां से उठ न सकी। अंत में वही पर दिल्ली के मानक चौक में उनका अंतिम संस्कार किया गया। आज भी पुरानी दिल्ली का वह मानक चौक महरोली जन जन के आस्था का केंद्र बना हुआ है। दादा गुरुदेव हमारे ऐसे उपकारी है जिनके उपकारों को हमेशा याद करना चाहिए। अपने जीवन को जीवंत उदाहरण बनाने का प्रयास करना है।
आत्मा की दशा और दिशा को बदलने वाला श्री कल्पसूत्र जी बोहराया गया
आज शेषमल अशोक कुमार राखेचा परिवार द्वारा पूज्य गुरुभगवंत को श्री कल्पसूत्र जी बोहराया गया। कल से पूज्य गुरुभगवंत के माध्यम से पूरा श्रीसंघ इस सूत्र का श्रवण करेगा। ये सूत्र अष्टप्रवचन माता रूप है। अंतिम श्रुत केवली, चौदह पूर्व धारी और बारह अंगो के ज्ञाता भद्रबाहु स्वामी जी द्वारा रचित लक्ष्मी वल्लभ जी महाराज द्वारा संस्कृत में अनुवादित तथा आनंद सागर जी महाराज द्वारा हिंदी में अनुवादित किया गया है। वीर संवत 993 से इसका वाचन संघ के समक्ष किया जाता है। इस सूत्र को श्रद्धा से सुनकर अपने हृदय के उतारने का प्रयास करना है । ये सूत्र हमारी आत्मा की दशा और दिशा को बदलने वाला सूत्र है। ये सूत्र हमे जीवन जीने की कला सिखाता है।