श्रावक हर जगह आदरणीय और पूज्यनीय होता है – लयस्मिता श्री जी म. सा.
लक्ष्य का निर्धारण कर आगे बढऩे की प्रेरणा देता है चातुर्मास - अमिवर्षा श्री जी म.सा.
बोहराया गया उपासक दशांग सूत्र, 5 ज्ञान की हुई पूजा
धमतरी। चातुर्मास के तहत ईतवार बाजार स्थित जैन मंदिर में प्रवचन जारी है। आज प्रवचन प्रारंभ करने से पूर्व नथमल घेवरचंद संकलेचा परिवार द्वारा परम पूज्य म.सा. को उपासक दशांग सूत्र बोहराया गया उसके बाद 5 ज्ञान की पूजा की गई। परम पूज्य लयस्मिता श्री जी म. सा. ने कहा कि इस सूत्र में श्रावक धर्म का वर्णन है। भगवान महावीर का शासन अनुशासित था अत: हमे भी अनुशासित रहना चाहिए। इस सूत्र से यही सीखने का प्रयास करना है। उपासक दशांग सूत्र तीन शब्दों से बना है। उपासक अर्थात परमात्मा की उपासना करने वाला, दशांग अर्थात दस श्रावक, सूत्र अर्थात आगम। ऐसा आगम जिसमे परमात्मा की उपासना करने वाले श्रावको का वर्णन है उस आगम का नाम है उपासक दशांग सूत्र। जैन दर्शन में श्रावको को रीड की हड्डी जैसा बताया गया है। एक पक्का श्रावक हर जगह आदरणीय और पूज्यनीय होता है। चार प्रकार की वाणी होती है। आप्तवाणी जिन्होंने अपनी आत्मा से ज्ञान प्राप्त किया है और उसे बताया है वह आप्तवाणी है। प्राप्तवानी जो ज्ञान बाहर से सुनकर या पढ़कर प्राप्त किया है वह प्राप्तवाणी है। शुतज्ञान गौतम स्वामी ने भगवान महावीर से सुनकर उसे गूंथने का अर्थात आगम की रचना की यह शुतज्ञान है। शास्त्रज्ञान आचार्य भगवान अपने शिष्यों को अनुशासित रखने के लिए जो ज्ञान बताते है वह शास्त्रज्ञान कहलाता है। 10 श्रावको का भगवान के प्रति पूर्ण समर्पण का भाव होने के कारण ये सभी भगवान महावीर के प्रमुख श्रावक कहलाते है।
परम पूज्य अमिवर्षा श्री जी म.सा.ने कहा कि जिस ज्ञान की हम पूजा कर रहे है उसका उद्देश्य यही है की हम भी धीरे धीरे ही सही पर ज्ञान हमे जरूर प्राप्त हो। जैन दर्शन के अनुसार अनंत भाव्यत्माओ ने वंदन करते हुए आत्म कल्याण कर लिया। जैसे एक नदी और एक नाला होता है। दोनो में जल और कचरा होता है । किंतु नदी बहते बहते अपने कचरे को किनारे करके स्वच्छ हो जाता है जबकि नाला का जल एक स्थान पर रहने के कारण कचरा उसमे और बढ़ जाता है। हमे भी नदी के जल के जैसे बनना है। हमे चातुर्मास यही प्रेरणा देने आया है की हम भी लक्ष्य का निर्धारण करके आगे बढ़ते रहना है।और जीवन का उद्धार करना है।