आत्मा के विकास के लिए सुदेव, सुगुरू और सुधर्म को संपत्ति मानना चाहिए – विशुद्ध सागर जी म.सा.
धमतरी। परम पूज्य विशुद्ध सागर जी म.सा. ने अपने आज के प्रवचन में फरमाया कि संसार के चक्कर में फंसकर न जाने हमे क्या हो गया है। जो नाशवान वस्तु है उससे हमे स्नेह हो गया है। और आत्मा जो शाश्वत है उससे आजतक स्नेह नही हो पाया। कंकड़ पत्थर रूपी रत्नो के स्नेह में हम फंसे हुए हैं। किंतु मानव जीवन रूपी पारसमणि जो हमे मिला है उसका ज्ञान ही नही है। इस मानव भव को पाने के लिए देवता भी तरसते है। ऐसे मानव भव रूपी अमूल्य भव का मूल्य हम समझ नही पा रहे है। पारसमणि को न पहचान कर उसकी सहायता से पक्षी उड़ाने वाले को जैसे हम मूर्ख या अज्ञानी कहेंगे। उसी प्रकार हम भी अज्ञानी ही है जो मानव भव रूपी पारसमणि को पहचान नहीं पा रहे है। जैसे एक मकड़ी स्वयं के बनाए जाल अर्थात घर के मोह में ही फंस जाता है उसी प्रकार हमारा भी जीवन हो गया है। ज्ञानी भगवंत कहते है हमे हर क्षण को अपना अंतिम क्षण मानकर अच्छे कार्य करना चाहिए। ज्ञानी कहते है अभी भी समय है अपने अंतर्मन को खोलकर आत्मा के विकास के लिए पुरुषार्थ कर लो।
आज हमे अपने भूतकाल में जाकर भविष्य की तैयारी का प्रयास करना है। हमे अपने भूतकाल के कार्यों पर विचार करना है। जैसे हम व्यापार करते है लेकिन उसका हिसाब नही रखते है तो हमे अपने व्यापार के वास्तविक स्थिति की जानकारी नही हो पाती है। उसी प्रकार हम जो भी कार्य करते है उसके माध्यम से आज हमे अपने आत्मा की वास्तविक स्थिति की जानकारी प्राप्त करने का प्रयास करना है। ज्यादा होना सुख की परिभाषा कभी नही हो सकता। आत्मा के विकास के लिए सुदेव, सुगुरू और सुधर्म को संपत्ति मानना चाहिए। क्योंकि इनके माध्यम से ही आत्मा का विकास हो सकता है। ज्ञानी भगवंत कहते है हमने इस जीवन में साधन तो बहुत प्राप्त कर लिया किंतु उससे सुख नही मिल पाया। हमने संपत्ति बहुत कमा लिया लेकिन उससे शांति नही मिल पाई। हमने अपने परिश्रम से सफलता भी प्राप्त कर ली। लेकिन उससे जीवन में आनंद नही आ पाया। हमे एक अच्छा परिवार मिल गया लेकिन प्रसन्नता नही मिला। हमने संसार के बहुत सारे पद प्राप्त कर लिए लेकिन जब तक इन पदों को नही छोड़ेंगे तब तक परमपद अर्थात मोक्ष का पद नही मिल सकता। अब हमारा पुरुषार्थ अपने आत्मोत्थान के लिए होना चाहिए हमे ऐसा प्रयास करना है।
सम्मान
धमतरी श्रीमती चांदनी पति मनीष बरडिया के 9 उपवास की तपस्या के अवसर पर श्रीसंघ की ओर से उनका सम्मान किया गया।