प्लास्टर आफ पेरिस से बनी मूर्तियां पर्यावरण के लिए है घातक, बिक्री पर रहेगी रोक
7 को गणेश चतुर्थी, जिले भर में सैकड़ो पंडालो व हजारों घरों में विराजेंगे गणपति
जिले में कई स्थानों पर हो रहा श्री गणेश प्रतिमाओं का निर्माण, बाहर से रेडिमेड प्रतिमा बेचने भी पहुंचते है लोग
धमतरी। 7 सितम्बर को हर्षोल्लास से गणेशोत्सव की शुरुवात होगी। इस दिन चौक चौराहो और घर-घर भगवान श्री गणेश विराजेंगे इस अवसर पर एक दिन पूर्व से ही शहर सहित जिले भर में श्री गणेश की छोटी-बड़ी प्रतिमाओं की बिक्री प्रारंभ हो जाएगी।
बता दे कि शास्त्रों के अनुसार और पर्यावरण की सुरक्षा की दृष्टि से मिट्टी की प्रतिमा ही उत्तम मानी गई है। इसके अतिरिक्त कुछ लोगों द्वारा प्लास्टर आफ पेरिस (पीओपी) की प्रतिमा भी बाजार में बेची जाती है। जो कि पर्यावरण के लिए काफी घातक होती है। बता दे कि जिले में हजारों घरो, दुकानों में छोटे-छोटे साइज के श्री गणेश की प्रतिमाएं विराजित की जाती है। कुछ साल पहले तक शहर में पीओपी की मूर्तियां भी खुलेआम बिकती थी जिस पर रोक लगाई गई है। बाउजूद इसके पीओपी की मूर्तियां बिकती है। ऐसे में इस बार गणेश चतुर्थी पर इस प्रकार मूर्तियों की बिक्री न हो इस ओर प्रशासन द्वारा ध्यान दिया जायेगा। कुछ साल पहले निगम द्वारा बड़ी मात्रा में पीओपी की प्रतिमाएं जब्त की जा चुकी है। लेकिन रोक के बाद भी अब तक पूर्णत: बिक्री बंद नहीं हो पाई है। पर्यावरण विज्ञानी और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के विशेषज्ञ बताते हैं कि पीओपी और दूसरे केमिकल से बनी मूर्तियों को जलाशयों और नदियों में विसर्जित करने से गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। मूर्तियों में जिन केमिकल रंगों का उपयोग होता है, उनमें क्रोमियम, लेड, जिंक और कापर जैसे खतरनाक रसायन होते हैं। ये रसायन जलाशयों में जाकर भूजल को प्रदूषित करते हैं।इससे जलाशय की तली तक सूर्य का प्रकाश पहुंचने से इसमें जल पादप, शैवाल और अन्य जल पादप के विकसित होने से इसका दुष्प्रभाव दूसरे जलीय जीवों पर पड़ता है। अधिकांश पीओपी की मूर्तियों में सिंथेटिक रंगों का उपयोग होता है। जो प्रतिमा को चमकदार बनाती है। यह रंग पानी को प्रदूषित करता है, जो जलीय जीव जंतुओं के लिए हानिकारक होने के साथ कई बीमारियों का कारक बनता है।
पीओपी पर्यावरण के लिए बेहद घातक
पीओपी से बनी मूर्तियों को पानी में घुलने में कई माह लग जाते है। इतना ही नहीं पीओपी में जिप्सम, सल्फर, फास्फोरस, मैग्नीशियम जैसे तत्व होते हैं, जो नदी या सरोवर की मछलियों और दूसरे जलीय जीवों पर दुष्प्रभाव डालते हैं। पर्यावरण विदों के अनुसार, पीओपी प्रकृति को भी नुकसान पहुंचाता है। इसको देखते हुए पीओपी की प्रतिमाओं का विक्रय नेशनल ग्रीन ट्रिबनल बोर्ड के निर्देश पर बंद है।
पहचान करने दी जा रही सलाह
पीओपी की एक मूर्ति चंद मिनट में तैयार हो जाती है। इससे जलाशय दूषित होते हैं। पीओपी से बनी मूर्तियां वजन में हल्की होती हैं। जबकि मिट्टी बनी मूर्ति का वजन ज्यादा होता है। मूर्ति के निचले हिस्से या किसी टूट हुए कोने पर नजर दौड़ाई जाए, तो पीओपी और मिट्टी की मूर्ति के अंतर को आसानी से समझा जा सकता है। जानकारी के मुताबिक, प्रशासन को चकमा देने के लिए मूर्तिकार पीओपी की मूर्तियों के ऊपरी आवरण में मिट्टी का लेप कर देते है, ताकि इसे बेचकर मुनाफा कमाया जा सके। इस तरह प्रशासन को भी गुमराह किया जाता है। इस पहचानना लोगों के लिए चुनौती है।
बीमारी का खतरा
डॉक्टरों के अनुसार, रसायन से प्रदूषित जल त्वचा और आंखों की एलर्जी का कारण बनता है। यहीं नहीं इससे किडनी और लंग्स से जुड़ी बीमारियां भी होती हैं। अगर प्रदूषण का स्तर ज्यादा है और जल लंबे समय तक उपयोग किया जाए तो इससे कैंसर तक हो सकता है। प्लास्टर आफ पेरिस, प्लास्टिक, सीमेंट, सिन्थेटिक रंग, थर्मोकोल का उपयोग कर बनाई गई प्रतिमा जलीय वनस्पतियों, जीव-जंतु के अलावा मनुष्यों की सेहत पर भी पड़ता है।
”नेशनल ग्रीन ट्रिबनल बोर्ड के निर्देशानुसार पीओपी की प्रतिमायें पूर्णत: बैन है। गणेश चतुर्थी पर इस तरह की प्रतिमाओं की बिक्री न हो इस ओर निगम प्रशासन की टीम विशेष ध्यान देगी। ÓÓ
पीसी सार्वा
उपायुक्त नगर निगम -धमतरी