प्रथम तीर्थंकर परमात्मा आदिनाथ भगवान के चरित्र का किया गया वाचन
इतवारी बाजार जिनालय में चातुर्मास के तहत परम पूज्य विशुद्ध सागर जी म.सा. द्वारा रोजाना दिया जा रहा प्रवचन
धमतरी। परम पूज्य विशुद्ध सागर जी म.सा. ने अपने आज के प्रवचन में फरमाया कि आज पहले तीर्थंकर परमात्मा आदिनाथ भगवान के चरित्र का वांचन किया गया। परमात्मा आदिनाथ प्रथम तीर्थंकर, प्रथम राजा कहे जाते है। ये ऐसे परमात्मा हुए स्वयं के आवश्यकता के लिए मौन और दूसरो को आवश्यकता के लिए मुखर थे। पुरुषो की 72 कला और स्त्रियों की 64 कलाओं का ज्ञान दिया था। परमात्मा आदिनाथ भगवान को स्वयं की कभी चिंता नही हुई। वे हमेशा दूसरो की चिंता करते थे। हम हर स्थान पर भगवान है ऐसा मानते है लेकिन आज विचार करना है क्या भगवान हमारे हृदय में आ सके। परमात्मा आदिनाथ को धनसार के भव में सम्यक्तव प्राप्त हुआ। उसके बाद परमात्मा के 13 भव हुए। 13वें भव में आपका जन्म नाभीराजा की भार्या मरूदेवा की रत्नकुक्षी से आषाढ़ बड़ी चौदस को जन्म हुआ। परमात्मा की माता ने पहले स्वप्न में वृषभ अर्थात बैल को देखा। इसलिए परमात्मा का जन्म नाम ऋषभ पड़ा। परमात्मा का विवाह और राज्याभिषेक इंद्र की बताई गई विधि से किया गया था। राज्याभिषेक के समय इंद्र द्वारा भगवान का जब पूरा शरीर आभूषण से सुसज्जित कर दिया था उस समय परमात्मा के सेवक युगलिक भगवान के चरणों में जल चढ़ाकर परमात्मा का अभिषेक कराया। जिस स्थान पर परमात्मा का राज्याभिषेक हुआ उस स्थान में नगर बसाकर इंद्र द्वारा उस नगरी का नाम विनीता नगरी रखा गया। परमात्मा के भरत तथा बाहुबली सहित कुछ 100 पुत्र थे। परमात्मा के दीक्षा के समय परमात्मा मुष्ठि लोच करने लगे। 4 मुष्टिलोच के बाद जब भगवान पांचवा मुष्टिलोच करने के लिए हाथ उठाया। उस समय इंद्र देव आकर निवेदन करते है है परमात्मा आप पांचवा मुष्टी लोच न करे यह आपके कंधे पर अत्यंत सुंदर सुशोभित हो रहे है। तब परमात्मा अंतिम मुष्टि लोच नही करते है। इस प्रकार परमात्मा आदिनाथ के दीक्षा के समय 4 मुष्टि लोच होता है तथा शेष 23 परमात्मा के पांच मुष्टि लोच होता है। पूर्व के भव में परमात्मा ने बैल के मुंह पर छींका बांधने को कहा था इसलिए परमात्मा के भी आदिनाथ के भव में 400 दिन का उपवास करना पड़ा। परमात्मा गोचरी के लिए प्रतिदिन इधर उधर विचरण करते है लेकिन शीत गोचरी नही मिलती है। 400 दिन बाद श्रेयांश कुमार जब परमात्मा को गोचरी के लिए जाते हुए अपने महल के गवाक्ष से देखते है तो उन्हें जातिस्मरण ज्ञान होता है। उसके प्रभाव से श्रेयांश कुमार ने साधु को गोचरी देने की विधि जानते है। फिर नीचे उतरकर परमात्मा से गोचरी का लाभ देने की विनती करते है। और उसी समय आए हुए सेलडी अर्थात गन्ने के रस परमात्मा आदिनाथ के 400 दिन के उपवास का पारणा कराते है। तब से वर्षीतप की तपस्या प्रारंभ हुई। और आज भी वर्षीतप के तपस्वियों का पारणा इक्षुरस अर्थात गन्ने के रस से कराया जाता है। मरुदेवा माता अपने पुत्र भरत को उलाहना देते है की तुम राजभोग करते हो लेकिन मेरा पुत्र आदिनाथ न जाने कैसे रहता होगा। उस समय भरत मरुदेवा को परमात्मा का दर्शन कराने ले जाते है। और वही माता मरुदेवा को केवलज्ञान और फिर मोक्ष हो जाता है। भरत आगे चलकर चक्रवर्ती राजा बनते हैं। और भरत के नाम पर ही इस देश का नाम भारत पड़ा। परमात्मा 83 लाख पूर्व गृहस्थ में रहे। 1000वर्ष छद्मस्थ में रहे। और 1000 वर्ष कम 1लाख पूर्व वर्ष केवली पर्याय में रहे। इस तरह कुल 84 लाख पूर्व की आयु पूर्ण कर परमात्मा अष्टापद तीर्थ से मोक्ष पधारे। ज्ञानी भगवंत कहते है जो कर्म करने में शूरवीर होते है वो धर्म करने में भी शूरवीर होते हैं। आदिनाथ परमात्मा का व्यक्तित्व ऐसा ही था। जो हमेशा दूसरो की चिंता करते है। और अपने लिए केवल धर्म को प्राथमिकता देते थे।