गुरु के प्रति समर्पण भाव ही हमें सिद्धि दिला सकती है – विशुद्ध सागर जी म.सा.
धमतरी। परम पूज्य विशुद्ध सागर जी म.सा. ने अपने आज के प्रवचन में फरमाया कि हे परमात्मा शांतिनाथ भगवान इस अशांत जग में आप ही शांति देने वाले हो। इस भवसागर से आप ही हमे तार सकते हो। आपको देखकर अगर मुझे अपनी आत्मा की शक्ति का भान हो जाए तो मेरा भी उद्धार संभव है। आपका दर्शन पाकर मेरा मन हर्षोल्लास से भर जाता है। आपको देखकर मेरे मन में आराधना-साधना की भावना स्वयं ही आ जाती है। आप ही मेरे आदर्श हैं। आपकी कृपादृष्टि जिस पर पड़ जाए उसके जीवन में परम शांति आ जाती है। आपके चेहरे से अद्भुत प्रभुता छलक रही है। आपकी इस प्रभुता को देखकर मेरा जीवन धन्य हो गया। आपके जीवन को देखकर मुझे चारित्र प्राप्त हो जाए तो मैं भी रत्नों की तरह चमक सकता हूं। मेरे जीवन में मोह और क्षोभ न आए। मैं हमेशा धैर्यवान बना रहूं। मेरे जीवन में आपकी कृपा हो जाए तो अक्षय सुख को प्राप्त कर सकता हूं क्योंकि आप निष्काम है। आपके जैसा निष्काम बनने का मुझे भी प्रयास करना है। अपनी आत्मा के विकास के लिए मुझे केवल आपका ही शरण स्वीकार है। आपकी शरण लेकर ही मैं अपनी आत्मा के वास्तविक स्वरूप को जान सकता हूं। कोई व्यक्ति कितनी भी बलवान हो कभी न कभी उसे किसी न किसी का शरण लेना ही पड़ता है। तभी उसे सफलता मिल सकती है। जैसे कोई इंसान कितना भी गोरा या काला हो। लेकिन सबकी परछाई हमेशा काली ही बनती है, ये सूर्य की ताकत है। हम चाहकर भी परछाई का रंग नही बदल सकते। वैसे ही हमे जीवन में सूर्य जैसे परमात्मा का शरण प्राप्त करने का प्रयास करना हैं। अशरण का इतना मोह है की जो परम सुख प्राप्त करने के लिए शरण दे सकते हैं हम उनके पास जाना ही नही चाहते। जो हमे आत्मा के विकास के लिए शरण दे सकते है उनके प्रति समर्पण भाव होना चाहिए। भक्त के हृदय में भगवान बस जाए ये कोई बड़ी बात नही है। लेकिन भगवान के हृदय में भक्त बस जाए ये बड़ी बात है। ऐसे भगवान और भक्त का श्रेष्ठ उदाहरण भगवान महावीर और भक्त गौतम स्वामी जी, भगवान राम और भक्त हनुमान जी है। इनके जैसे भगवान और भक्त का उदाहरण और कहीं और नही मिलता। जिनके मन में परमात्मा के प्राप्ति समर्पण भाव आ जाए परमात्मा की कृपादृष्टि मिल जाए उसे कुछ और नहीं चाहिए। और ये कुछ नही चाहिए की भावना ही उसे सबकुछ दिला देती है। भगवान अपने भक्त को अपने जैसा ही भगवान बना देते है। ज्ञानी कहते है की हम संसार में जिनका भी शरण लेते है एक न एक दिन उस शरण को छोडऩा पड़ता है। लेकिन परमात्मा का शरण मिल जाए तो और किसी के शरण की जरूरत ही नही होती। जीवन में एक ऐसा गुरु अवश्य बनाना चाहिए जिनके किसी भी बात पर हम कभी प्रश्नचिन्ह न लगाए। गुरु की हर बातों को पूर्ण समर्पण के साथ स्वीकार करें। क्योंकि यही समर्पण भाव ही हमें सिद्धि दिला सकती है। परमात्मा के प्रति जब हमारे हृदय में उल्लास का भाव आ जायेगा तो संसार के प्रति उदासीनता अपने आप आ जायेगी। हम इस संसार में जो पाप कर्म हंस हंस कर सकते है जब उसका फल मिलता है वह कर्म उदय में आता है तब उसे रो रोकर भोगना पड़ता है। इसलिए हमेशा पुण्य के काम करना चाहिए। ताकि भविष्य में उसका फल भी अच्छा ही प्राप्त हो।