शहर सहित ग्रामीण क्षेत्रो में हर्षोउल्लास से निकाली गई भगवान गौरा गौरी की बारात
पारंपरिक वाद्य यंत्रों की धुन पर गौरा गीतों की बारात में झूमते नाचते शामिल हुए लोग, गौरा गौरी के जयकारो से गूंजा क्षेत्र
यादव समाज द्वारा बाजे की पारंपरिक धुनों के साथ दोहे गाते राउत नाचा के साथ पहुंचे त्योहार की बधाई देने
गाय, बछड़े को खिचड़ी खिलाकर गोवर्धन खुंदवाई की पूरी की गई रस्म
जिले में दीपावली उत्सव की धूम मची हुई है. शहर सहित ग्रामीण अंचल में लक्ष्मी पूजा के दूसरे दिन आज गोवर्धन पूजा व गौरी-गौरा उत्सव मनाया जा रहा है. इस साल यह उत्सव 2 नवम्बर को है। इसके 5 दिन पहले से गौरा जगाने की रस्म (गौरा उत्सव) की गई। लक्ष्मी पूजा की रात भगवान शंकर व माता पार्वती का श्रृंगार हुआ.
जिले में पारंपरिक धुनों के बीच गौरा जगाने की रस्म आदिवासी समाज द्वारा किया गया. इसमें अन्य समाजों के लोगों की आस्था भी है। गौरा जगाने के पहले महिलाओं के साथ युवतियां एकत्रित होकर पूजन किया गया.पारंपरिक वाद्य यंत्रों की धुन पर गौरा गीतों के साथ रस्म निभाई गई । साथ ही गौरी-गौरा का रात में विश्राम के लिए गीतों के माध्यम से आह्वान भी हुआ. इस दौरान कई लोग देव आने पर झूमते रहे .आज सुबह से वार्डो एवं ग्रामीण क्षेत्रों में भगवान गौरा गौरी की बारात निकाली गई.जिसमे भक्त पारम्परिक बाजे गाजे के साथ नाचते झूमते हुए शामिल हुए.इस दौरान पूरा क्षेत्र गौरा गौरी की जयकारो से गूंजता रहा.जगह जगह गौरा गौरा का पूजन होता रहा. दोपहर में यादव समाज के लोग बाजे की पारंपरिक धुनों के साथ दोहे गाते राउत नाचा के साथ त्योहार की बधाई देने पहुंचे. गाय, बछड़े को खिचड़ी खिलाकर गोवर्धन खुंदवाई की रस्म पूरी की गई.गौरा-गौरी की बारात दीपावली का प्रमुख अंग है.इस बिना पर्व अधूरा है.गोवर्धन पूजा के दिन शहर के कई वार्डो से गौरा-गौरी की बारात निकाली गई. जिनमे जालमपुर गौरा-चौरा, भागवत चौक, कुम्हारपारा, भगत चौक, सिहावा चौक, बनियापारा, शिव चौक, रामबाग, आमापारा, अधारी नवागांव, हटकेशर, सोरिद, दानीटोला, महिमासागरपारा, विंध्यवासिनी वार्ड, बठेना रिसाई पारा सहित ग्रामीण अंचल में गौरा-गौरी की बारात निकाली गई । कुछ वार्डो व ग्रामीण क्षेत्रों में सुबह गौरा गौरी की बारात निकाल कर शाम को विसर्जन होता है तो अधिकांश वार्डो में सुबह व शाम को बारात निकाल कर रात में विसर्जन किया जायेगा. लक्ष्मी पूजा की आधी रात घर-घर से दीप के लिए तेल व कलश लाने का रस्म भी निभाई गई.
बता दे कि लक्ष्मी पूजा के दूसरे दिन गौरा उत्सव मनाने की परंपरा है। इस परंपरा का निर्वहन मुख्य रूप से आदिवासी समाज करता है। अन्य समाज, वर्ग के लोग सहयोगी होते है। गौरा जगाने के पहले महिलाओं के साथ युवतियां गौरा चौक पर एकत्रित होकर पारंपरिक वाद्य यंत्रों की धुन पर गौरा गीतों के साथ पूजा की रस्म निभाई जाती है। भगवान शंकर व माता पार्वती की विश्राम के लिए गीतों के माध्यम से आह्वान होता है। यह परंपरा पूर्वजों के समय से चल रही है।