अनादिकाल से आजतक हम आत्मा को पहचान नहीं पाए – लयस्मिता श्री जी म.सा.
प्रतिक्रमण से पापों का प्रायश्चित किया जा सकता है - भव्योदया श्री जी म.सा.
धमतरी. परम पूज्य लयस्मिता श्री जी म.सा. ने आज के प्रवचन में कहा कि उपासक दशांग सूत्र के माध्यम से महान आत्मा की कथा श्रवण कर रहे है। जिनका संसार निवृत्त हो गया है। जंबूस्वामी, सुधर्मास्वामी से प्रश्न पूछते है और सुधर्मास्वामी उसका जवाब देते हुए बता रहे है कि आनंद श्रावक परमात्मा महावीर के संपर्क में आकर व्रतधारी श्रावक बन गए। अनादिकाल से आजतक हम आत्मा को नहीं पहचान पाए, क्योंकि आज तक हमने आत्म के स्वभाव को नही जाना है। आजतक हमारी आत्मा निवृत्त स्वभाव में चल रहा है जुबली आत्मा का सही स्वभाव समभाव है। आत्मा का स्वभाव ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तत्व में रमण करना है। जब तक हमे सम्यकत्व न मिल जाए आत्मा के वास्तविक स्वभाव को हम नही जान सकते। परमात्मा का लक्ष्य करके कार्य करने से ही पापों की निर्जरा होती है। जैसे एक छोटा सा बीज विशाल वट वृक्ष को पैदा करने की क्षमता रखता है वैसे ही हमारे छोटे छोटे कर्म बड़े बड़े फल देने की क्षमता रखते है। अगर हम परमात्मा की वाणी सुनकर उनके बताए मार्ग पर चलते है, तो विपरीत परिस्थिति आने पर भी विचार आता है की ये विपरीत परिस्थिति मेरे कर्मो की निर्जरा के लिए एक सुअवसर है। इसका लाभ उठाकर अपने पूर्व के पापों का प्रायश्चित करना चाहिए। अपने संसार को सीमित करने के लिए कर्मो को निर्जरा करनी पड़ती है।
परम पूज्य भव्योदया श्री जी म.सा. ने अपने प्रवचन में कहा कि प्रतिक्रमा के छ: आवश्यक में चौथा आवश्यक है प्रतिक्रमण। प्रतिक्रमण में अपने पापों का प्रायश्चित किया जाता है अर्थात अपने पापों से पीछे हटने की क्रिया है प्रतिक्रमण। पांचवा आवश्यक है कार्योत्सर्ग। ये दो शब्दो से मिलकर बना है काया+ उपसर्ग। अर्थात काया को उपसर्ग( कष्ट) देकर पापों का प्रायश्चित करना कार्योत्सर्ग कहलाता है। हमे जिनमुद्रा में कार्योत्सर्ग करना चाहिए। कार्योत्सर्ग करते समय शरीर का मोह छोड़ देना चाहिए और पूरा ध्यान अपनी आत्मा की ओर होना चाहिए। छटवां आवश्यक है प्रत्याख्यान। प्रतिक्रमण के माध्यम से अपने पापों करना चाहिए। अपनी इच्छाओं पर संतोष रूपी ताला लगाना चाहिए। ताकि पापों से बच सके। अपनी इच्छाओं को रोकना ही तप है। जैसे एक डॉक्टर शरीर के घाव पर पहले मलहम लगाता है फिर पट्टी बांध देता है ताकि कोई कीटाणु प्रवेश न कर पाए। ठीक उसी प्रकार हमारी आत्मा में कार्योत्सर्ग रूपी मलहम लगाने के बाद प्रत्याख्यान रूपी। पट्टी बांध देना चाहिए ताकि तृष्णा रूपी कोई कीटाणु प्रवेश न कर सके। आज के प्रवचन में भंवरलाल छाजेड़, पारसमल गोलछा, सुरेश गोलछा, मोटी बोहरा, संजय संकलेचा, संजय बरडिया, सतीश नाहर, शिशिर सेठिया, कुशल चोपड़ा, श्रीमती किरण सेठिया, श्रीमती सरिता नाहर, श्रीमती डिंपल गोलछा, श्रीमती शकुन सराफ, श्रीमती चंदाबाई ललवानी, श्रीमती संगीता गोलछा सहित बड़ी संख्या में समाजजन उपस्थित थे.