जब लोभ और अभिमान बढऩे लगता है तो स्वयं भगवान उसका वध करने आते है – पं. ऋषभ त्रिपाठी
मुजगहन में शिव महापुराण कथा में उमड़ रही श्रद्धालुओं की भीड़
धमतरी। ग्राम मुजगहन में प्रेमलता कमलनारायण तिवारी एवं परिवार द्वारा आयोजित शिव महापुराण के छँटवे दिन में पं. ऋषभ त्रिपाठी जी ने जलंधर वध की कथा सुनाई। उन्होंने बताया कि कैसे नारायण ने छल से वृंदा के पतिव्रत धर्म को नष्ट किया और महादेव ने जलंधर का वध किया। आगे हिरण्याक्ष की और हिरणकश्यपु की कथा सुनाई और कहा कि हिरण्याक्ष का अर्थ है लोभ और हिरणकश्यपु का अर्थ है अभिमान जब लोभ और अभिमान बढऩे लगता है तो स्वयं भगवान उसका वध करने के लिए आते है। जैसे हिरण्याक्ष का वध भगवान ने वाराह के रूप में किया और हिरणकश्यपु का वध भगवान ने नरसिंह के रूप में किया आगे हिरण्याक्ष का एक पुत्र हुआ अन्धक जिसके दोनों नेत्र नहीं थे नेत्र नहीं होने के कारण इसके भाई इसे चिढ़ाया करते थे। और एक दिन इसे राज्य से भी निकाल दिया गया। अन्धक ने वन में जाकर ब्रह्मा जी की 1000 वर्षों तक तपस्या की और ब्रह्मा जी से तीन वरदान माँगे। जिस राज्य से मुझे निकाला गया है मैं उसी राज्य का राजा बनु और मेरे भाई मेरे सेवक बने मेरे नेत्र वापस आ जाये। मैं किसी से भी ना मारा जाऊं। यहाँ तक की नारायण और शिव से भी नहीं। तब ब्रह्मा जी ने कहा कि अपनी मृत्यु का कोई विकल्प बताओ तब अन्धक ने कहा कि यदि मैंने कभी अपने माँ समान स्त्री के प्रति काम वासना की भावना ले आयी तो उसी समय मेरा नाश हो जाये। अन्धक वरदान प्राप्त करके राज्य लोटा और राजा बनकर तीनों लोकों में राज किया। एक दिन यह विचरण करते हुए मादरचल पर्वत पहुँचा जहाँ भोले बाबा माँ पार्वती के साथ बैठे थे उसी समय अन्धक की दृष्टि माँ पार्वती की सुंदरता पर पड़ी और इसके मन में जगत जननी के प्रति काम की भावना आई और भगवान शिव ने अन्धक का वध कर दिया। वहीं पंडित ऋषभ त्रिपाठी साथ ही हनुमान जी के जन्म की कथा और रुद्राक्ष, बिल्वपत्र व भस्म के महिमा की कथा सुनाई।