झूठ बोलने की आदत जीवन में भय और दुख का कारण बनता है – प.पू. प्रशम सागर जी म.सा.

धमतरी। परम पूज्य उपाध्याय प्रवर अध्यात्मयोगी महेंद्र सागर जी महाराज साहेब परम पूज्य उपाध्याय प्रवर युवामनीषी स्वाध्याय प्रेमी मनीष सागर जी महाराज साहेब के सुशिष्य परम पूज्य प्रशम सागर जी महाराज साहेब परम पूज्य योगवर्धन जी महाराज साहेब श्री पाश्र्वनाथ जिनालय इतवारी बाजार धमतरी में विराजमान है। आज परम पूज्य प्रशम सागर जी महाराज साहेब ने प्रवचन के माध्यम से फरमाया कि जिस प्रकार किसी बाग में खिलने वाला फूल एक दिन मुरझा जाता है उसी प्रकार इस संसार से एक दिन सभी को जाना है। धन, दौलत के चक्कर में पड़कर हम अपनी वास्तविकता को भूल गए है। हमें विचार करना है कि हम कहां से आए है और कहां जाना है,? ये किसी को पता नहीं। किंतु अगर मानव जन्म के रुप में मिला हुआ अवसर हाथ से निकल गया तो पछतावा करने से भी कुछ नहीं होने वाला है। संसार के झूठ और पाप के चक्कर में हम पड़े हुए है जबकि हमें पुण्य की कमाई करना चाहिए। ज्ञानियों ने कहा है ये संसार तो केवल शरीर का ठिकाना है वो भी कुछ समय के लिए। जबकि आत्मा का ठिकाना तो मुक्ति अर्थात सिद्धगति अर्थात सिद्ध, बुद्ध होना है। ये चातुर्मास काल हमे कुछ जीवन के कुछ अनसुलझे प्रश्नों का जवाब जिनवाणी के माध्यम से देने आया है। परमात्मा महावीर की अंतिम देशना जो उत्तराध्ययन सूत्र में है उसे सुनकर और पढ़कर नहीं समझा जा सकता बल्कि आत्मविकास की रुचि अर्थात जिज्ञासा पूर्वक इसे समझा जा सकता है। उत्तराध्ययन सूत्र में दो शब्द है उत्तर और अध्ययन। उत्तर का अर्थ है प्रधान और अध्ययन का अर्थ है पाठ। परमात्मा ने जब अंतिम देशना दी उस समय उनका छठम का तप चल रहा था। जीवन के अंतिम समय में सबसे बड़ी देशना परमात्मा महावीर ने दी। इस सूत्र का पहला अध्याय है विनय श्रुत – विनय का अर्थ है झुकना। झुकने का अर्थ है ज्ञान से झुकना, ज्ञान के लिए झुकना और ज्ञान में झुकना। हमें विचार करना है कि हम कितना और कैसा झूठ बोलते है। शायद जीवन में हम डॉक्टर से झूठ नहीं बोलते क्योंकि शरीर का मोह होता है। जबकि हमें कम से कम परिवार और गुरु से झूठ नहीं बोलना चाहिए। क्योंकि इनके समक्ष सच बोलकर हम अपने जीवन से दोषों को दूर कर सकते है। और पतन से बच सकते है। सदगुणों को प्राप्त कर सकते है। झूठ बोलने की आदत हमारी आत्मा में कठोरता लाती है। झूठ बोलने से जीवन में भय आता है और भय दुख का कारण बनता है। झूठ बोलकर उसे याद रखना पड़ता है जबकि सच स्वत: ही याद रहता है। हमारा एक झूठ जीवन भर का विश्वास तोड़ देता है। झूठ बोलकर हम पाप का बंध करते है।