परमात्मा का कोई भी कल्याणक जीव मात्र के कल्याण के लिए होता है – परम पूज्य प्रशम सागर जी म. सा.
पाश्र्वनाथ जिनालय में उत्साह और उमंग के साथ मनाया गया भगवान महावीर का जन्म कल्याणक महोत्सव

धमतरी। परम पूज्य उपाध्याय प्रवर अध्यात्मयोगी महेंद्र सागर जी महाराज साहेब परम पूज्य उपाध्याय प्रवर युवामनीषी स्वाध्याय प्रेमी मनीष सागर जी महाराज साहेब के सुशिष्य परम पूज्य प्रशम सागर जी महाराज साहेब परम पूज्य योगवर्धन जी महाराज साहेब श्री पाश्र्वनाथ जिनालय इतवारी बाजार धमतरी में विराजमान है। आज परम पूज्य प्रशम सागर जी महाराज साहेब ने प्रवचन के माध्यम से फरमाया कि कल हमने कल्पसूत्र के माध्यम से परमात्मा महावीर के जन्म कल्याणक का श्रवण किया। और कल का दिन ठीक उसी उत्साह और उमंग के साथ मनाया जिस तरह परमात्मा का जन्म कल्याणक महोत्सव मनाते है। जिस तरह सभी को परमात्मा के जन्म कल्याणक का इंतजार होता है उसी तरह हमें परमात्मा के जन्मकल्याणक के श्रवण का भी इंतजार रहता है। परमात्मा का कोई भी कल्याणक जीव मात्र के कल्याण के लिए होता है। भगवान महावीर का जीव 26 भव की यात्रा करके यहां पहुंचे है। यह परमात्मा का अंतिम भव है ।इस भव के बाद पुन: परमात्मा इस संसार में नहीं आयेंगे। हमें भी अपने ज्ञान चक्षु को खोलकर परमात्मा के जीवन को समझने का अपने जीवन में उतारने का प्रयास करना है। 27वें भव में परमात्मा के आने के बाद शेष 26 भव भूल जाने योग्य है। क्योंकि परमात्मा को इतिहास में केवल उनके 27वें भव के रूप में अर्थात महावीर के रूप में याद किया जाएगा। परमात्मा के जीवन से हमे भक्ति और शक्ति दोनों को ही देखना और समझना है। तभी हम भी भगवान महावीर जैसा बन सकते है।परमात्मा के जन्म के बाद महोत्सव मनाया जाता है। परमात्मा के जन्म के बाद इसकी पहली सूचना 56 दिक्कुमारी को मिलता है। ये सभी धरती में आकर 8- 8 के समूह में 7 अलग अलग दिशाओं से आकर भूमि को शुद्ध करके अर्थात अपने हृदय को शुद्ध करके, पुष्पों की वृष्टि करके अर्थात अपने मन को कोमल बनाकर, दर्पण दिखाकर अर्थात अपने वास्तविक स्वरूप को देखकर, जल से भरा हुआ कलश लाकर अर्थात परमात्मा को देखकर परमात्मा के ज्ञान रूपी जल से अपनी आत्मा रूपी कलश को भरना है। परमात्मा के सामने पंखा दिखाकर अर्थात परमात्मा की सेवा करके अपने अंदर के विषय कषाय रूपी गर्मी को दूर करने का प्रयास करना है। चंवर डुलाकर अर्थात परमात्मा के और अधिक करीब आकर परमात्मा की सेवा करके का अर्थात परमात्मा के निकट आने का प्रयास करना है। धीरे धीरे परमात्मा के इतने निकट आना है कि हमारी आत्मा भी परमात्मा बन सके। इस प्रकार परमात्मा का जन्म महोत्सव मनाती है। परमात्मा का पहले हमे सानिध्य प्राप्त करना है । उसके बाद परमात्मा से संसार का संज्ञान अर्थात ज्ञान प्राप्त करना है। तभी संसार से सुरक्षा का अहसास मिल सकता है अर्थात हम भी सिद्ध बुद्ध और मुक्त हो सकते है। सौधर्मेंद्र का आदेश पाकर सभी इंद्र मेरु पर्वत पर पहुंचते है। दूसरी ओर सौधर्मेंद्र त्रिशला माता से आज्ञा लेकर उनको औस्वपिनी निंद्रा देकर परमात्मा को लेकर अपना पंचरूप बनाकर मेरुपर्वत के पाण्डुक शिला पर जाते है। शेष इंद्र वहां पहुंचकर परमात्मा के अभिषेक की तैयारी करते है। सभी औषधियुक्त सुगंधित जल लेकर परमात्मा का अभिषेक करने के लिए तैयार हो जाते है। और आदेश की प्रतिक्षा करते है। परमात्मा का 1 करोड़ 60 लाख कलश से अभिषेक किया जाता है। इसी समय इंद्र को शंका हो जाती है कि इतने कलशों के अगर परमात्मा का अभिषेक होगा तो परमात्मा का शरीर कहीं बह न जाए। यह विचार करते हुए अभिषेक का आदेश नहीं देते है। परमात्मा अपने अवधिज्ञान से जब यह जान लेते है तो अपने पैर के एक अंगूठे से मेरुपर्वत को थोड़ा सा स्पर्श करते है। इसके प्रभाव से 1 लाख योजन का मेरुपर्वत पूरा कम्पायमान हो जाता है। इस घटना को इंद्र क्रोधित होते हुए अपने अवधिज्ञान से जानते है। इस नाम के लिए आप सभी की सहमति चाहिए। इस प्रकार परमात्मा का जन्म के समय माता पिता द्वारा दिया गया नाम वर्धमान है।

