मिच्छामी दुक्कड़म के माध्यम से आत्मा और परमात्मा की दूरी को कम करने का प्रयास करना है – लयस्मिता श्री जी म. सा.
अपने गलत आचरण, अपराधों के लिए परमात्मा से मांगे क्षमा - जिनवर्षा श्री जी म. सा.
चातुर्मास के तहत श्री पाश्र्वनाथ जिनालय में आज हुआ परमात्मा से माफी विषय पर विशेष प्रवचन
धमतरी। छत्तीसगढ़ रत्न शिरोमणी महत्तरा पद विभूषिता परम पूज्य मनोहर श्री जी म.सा. की सुशिष्या परम पूज्य लयस्मिता श्री जी म.सा. आदि ठाणा 5 के चातुर्मास हेतु श्री पाश्र्वनाथ जिनालय में विराजित है। आज रविवार का विशेष प्रवचन हुआ जिसका विषय था परमात्मा से माफी। परम पूज्य श्री लयस्मिता श्री जी म. सा. ने अपने प्रवचन में कहा कि हम सभी को आज के प्रवचन के माध्यम से उस परमात्मा से, परम आत्मा से अपनी गलती के लिए, अपने अपराधो के लिए अपने पापों के लिए क्षमा मांगना है। अपनी हृदय की गहराइयों से अपने अंत: से मिच्छामी दुक्कडम देना है। इस मिच्छामी दुक्कड़म के माध्यम से आत्मा और परमात्मा की दूरी को कम करने का प्रयास करना है क्योंकि आत्मा तो सबकी एक समान है। जिस आत्मा ने अपने पुरुषार्थ से अपने अष्ट कर्मो का नाश कर लिए वो आत्मा से परमात्मा बन गया, और जिस आत्मा ने अपने कर्मो का अब तक नाश नही किया है वो आज भी संसार में भ्रमण कर रहा है।
परम पूज्य श्री जिनवर्षा श्री जी म. सा. ने अपने प्रवचन में कहा कि संसार की दुर्लभ से दुर्लभ वस्तु मुझे आपकी कृपा से प्राप्त हुई, लेकिन फिर भी मैं इसके लिए आपका उपकार नही मानता हू। आपकी आज्ञा को ठुकरा देता हू। अपने उन समस्त पाप कार्यों के लिए आज परमात्मा और गुरूवर्या श्री की साक्षी में मिच्छामी दुक्कड़म (माफी मांगना) देता हू। मैने संसार के सभी लोगो से अपने गलत आचरण के लिए, अपने अपराधों के लिए क्षमा मांग ली परंतु ही परमात्मा मैं आपसे क्षमा मांगना भूल गया आज मैं आपसे हृदय की गहराइयों से क्षमा मांगने आया हू। ही परमात्मा आपकी कृपा से साधु साध्वी, श्रावक श्राविका का पद हमे मिला। इस पद में आने के बाद जो भी दुष्कृत किया उन सबके लिए आज क्षमा याचना करता हू। पर्वधिराज पर्युषण पर्व। कुछ दिनों में आने वाला है , उससे पहले हमने सबसे माफी मांग ली, किंतु जिनसे हमे पहचान मिली आज उस परमात्मा से क्षमायाचना करना है। हमे धार्मिक कार्य करने के समय में प्रमाद (आलस्य) किया, ज्ञान और ज्ञानी की आशातना की। शक्ति और संयोग होते हुए भी चारित्र नहीं लिया। व्रत, नियम आदि न लिया अथवा लेकर तोड़ा। विपरीत परिस्थिति आने पर आत्महत्या की इच्छा की। जाने अनजाने 18 प्रकार के पाप किए किंतु कभी उसका प्रायश्चित नही किया। ही परमात्मा आज मैं उन सभी पाप कार्यों के लिए आपसे क्षमा याचना करता हू। पापों का प्रयक्चित करते हुए अपने पापों के प्रति मन में धिक्कार की भावना आनी चाहिए। हमने दूसरो के साथ क्रोध, मान, माया, लोभ किया । आर्तध्यान और रौद्र ध्यान किया। उन सबके लिए आज मिच्छामि दुक्कडम देने का ये सुअवसर मिला है। हमारी मानसिकता ऐसी हो गई है जिसके कारण हमे लगता है संसार में हमे धन से सुख मिल सकता है लेकिन यह सत्य नही है। जैसे धन से गद्दा मिल सकता है लेकिन नींद नही। धन से दवाई मिल सकती है लेकिन अच्छा स्वास्थ्य नही। धन से अनाज मिल सकता है लेकिन भूख नही। क्योंकि सुख हमारे अंदर है। और हम बाह्य साधनों में इसे खोज रहे है। अकेले एकांत में चिंतन करना है की हमारे पास धन के बढऩे से सुख बढ़ा या चिंता बढ़ी। जिसे परमात्मा की वाणी में तनिक भी अश्रद्धा हो अविश्वास हो उसे कभी सम्यकदर्शन नही मिल सकता। शरीर को रूपवान बनाने के लिए हम जितना पुरुषार्थ करते है अगर उतना पुरुषार्थ शरीर को गुणवान बनाने के लिए करे तो आत्म का उत्थान हो सकता है।