फसल चक्रीकरण नहीं होने से बंजर हो रही कृषि भूमि
मृदा परीक्षण, कराने, कीटनाशकों का प्रयोग कम करने, फसल चक्रीकरण की ओर ध्यान नहीं दे रहे किसान
लगातार घट रही कृषि मिट्टी की उपजाऊ क्षमता, निकट लाभ के चलते भविष्य के नुकसान को किया जा रहा नजर अंदाज
धमतरी। साल दर साल मिट्टी की उपजाऊ क्षमता कम होते जा रही है। ऐसे ही चलता रहा तो भविष्य कई कृषि भूमि जो आज उपजाऊ है वह बंजर हो सकती है। लेकिन इस समस्या के समाधान का प्रयास नहीं किया जा रहा है। कृषि व मृदा वैज्ञानिकों के अनुसार साल दर साल मिट्टी में एक ही फसल लेने से धीरे-धीरे मिट्टी की उपजाऊ क्षमता घटते जाती है। और एक समय ऐसा आता है कि मिट्टी बंजर हो जाती है। इसके बचाव हेतु हमे फसल चक्रीकरण को अपनाना चाहिए। बदल-बदल कर फसल लेने से मिट्टी की उपजाऊ क्षमता बनी रहती है। लेकिन विडम्बना है कि जिले के अधिकांश किसान ज्यादातर धान की ही फसल लेते है। कई किसान साल में डबल फसल लेते है और दोनो बार धान उगाते है। सालों से लगातार धान की ही फसल लेने के कारण उपजाऊ क्षमता घटती जा रही है। बता दे कि चक्रीकरण नहीं अपनाने के कारण मिट्टी में नाइट्रोजन फास्फोरस, पोटास पीएच, ईएच घट रही है। जनजागरुकता और प्रयास नहीं होने के कारण लोग चक्रीकरण पद्धति को नहीं अपना रहे है। बता दे कि कृषि विभाग द्वारा मृदा परीक्षण किया जाता है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि मृदा कि उपजाऊ क्षमता कितनी है। कुछ साल पहले तक प्रति हेक्टेयर नाइट्रोजन क्षमता 280 किग्रा. थी जो कि घट कर 120-150 तक आ गई है। यह कमी भविष्य में बंजरता का खतरा बयां कर रही है।
कीटनाशकों अंधाधुन प्रयोग घातक
फसलों को बीमारियों से बचाने अच्छी पैदावार के लिए फसल में रसायनिक खादो का प्रयोग किया जाता है। लेकिन कई किसानों द्वारा अंधाधुन तरीके से रसायनिक खादो का प्रयोग न सिर्फ उपज को जहरीला बना रहा है बल्कि मिट्टी की उपजाऊ क्षमता भी घटा रहा है। बीमारियों से बचाने फसल में फ्लोरोपाइरीफास, सायपरमेथीन, ट्रायजोफास, मोनोक्रोटोफास, डेल्टामेथीन, ड्राईक्लोरोवास सहित विभिन्न खादो का उपयोग करते है। इन कीटनाशकों के प्रयोग से वर्तमान में तो किसानों को राहत मिल जाती है लेकिन भविष्य के भारी नुकसान को नजरअंदाज कर दिया जाता है। साथ ही मिट्टी व आसपास की जमीन व हवा भी कीटनाशकों के ज्यादा प्रयोग से जहरीली होने लगती है।