बढ़ते मोबाईल टावरों के रेडियन से पक्षियों के जीवन पर बढ़ता जा रहा खतरा
शहर में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशो का उल्लंघन कर लगाये गये है कई टावर, घनी आबादी स्कूल, शासकीय दफ्तरों के पास लगे है टावर
मानव स्वास्थ्य के लिए भी घातक है रेडिएशन, कैंसर, ब्रेन हेमरेज व मानसिक रोग से ग्रस्त होने की रहती है आंशका
धमतरी। मोबाईल आज के दौर में आवश्यक वस्तु है। इसके बिना आज का जीवन अधूरा है। लेकिन मोबाईल पर बेहतर नेटवर्क देने इस व्यापार में आगे निकलने की होड़ से कई तरह के खतरे उत्पन्न हो सकते है। बता दे कि मोबाईल में बेहतर कालिंग व इंटरनेट बेहतर नेटवर्क होने पर ही संभव हो पाता है। इसके लिये लगातार मोबाईल टावरों की संख्या पिछले कुछ सालों में बढ़ाई गई है। चर्चा है कि इस दौरान नियमों की अनदेखी कर दी गई सुप्रीम कोर्ट का निर्देश है कि मोबाईल टावर घनी आबादी वाले क्षेत्रो व स्कूल, कॉलेज अस्पतालों के बिल्कुल समीप न लगायी जाये, क्योंकि मोबाईल टावरों से निकलने वाले घातक रेडियेशन का खतरा सबसे ज्यादा टावर के आसपास ही रहता है। रेडियशन की त्रीवता सबसे ज्यादा टावर के करीब होती है ऐसे में खतरे को देखते हुए निर्देश जारी किया गया था लेकिन इसका पालन तो जिले में होता नजर नहीं आता। बता दे कि मोबाईल टावरों के रेडिएशन का खतरा न सिर्फ मानव पर पड़ता है। इससे ज्यादा खतरा पक्षियों पर होता है। ऐसा अब तक के कई शोध में स्पष्ट हो चुका है। चर्चा है कि टावरों के रेडिएशन के सम्पर्क में आकर पक्षियों की रोगप्रतिरोधक व प्रजनन क्षमता काफी कम हो जाती है। लगातार रेडिएशन के सम्पर्क मे रहने के बाद इनकी मृत्यु भी हो जाती है। एक तो पहले ही मौसम चक्र में परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग पृथ्वी के तापमान में वृद्धि, जंगलो व पेड़ पौधो की घटती संख्या से ं पक्षियों की संख्या घट रही है। उस पर शहर क्षेत्रो में रेडिएशन पक्षियों के लिए घातक है। लेकिन इस ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार मोबाईल रेडिएशन की बढ़ती फ्रिक्वेंसी से इंसानों में कैंसर ब्रेनहेमरेज, मानसिक रोग सहित अन्य कई गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ गया है। जानकारी के अनुसार जिले में लगभग 150 के आसपास मोबाईल टावर है। जिनमें से कई के लगाने व संचालन के लिए मापदण्डो का पालन नहीं हो रहा है। जो कि घातक है। सूत्रो की माने तो जिले के कई टावरों में इलेक्ट्रोमेनेटिक रेडिएशन सिस्टम नहीं लगा है। जिससे की रेडिएशन मापा जाता है।
कई पक्षियां विलुप्ति के कागार पर
शहर के कई बुजुर्गो ने चर्चा के दौरान बताया कि सालों पहले जब औद्योगिकीकरण क्रांक्रीटीकरण और मोबाईल फोन और उनका घातक रेडिएशन नहीं था तब पंक्षियों की चहचहाहट रोजाना आंगन रास्तो सभी स्थानों पर सुनाई देती थी। अब तो पंक्षियों की मधुर आवाज सुनने के लिए कान तरस गये है। कुछ पक्षी तो ऐसे है तो पहले बड़ी तादात में थे लेकिन अब काफी कम नजर आते है। उनका शिकार भी नहीं किया गया है। इससे ऐसे लगता है कि रेडिएशन और इंसानों द्वारा किये जा रहे प्रकृति के साथ छेड़छाड़ से कई पक्षी विलुप्ति के कागार पर है।