जिस दिन हम दिखावा छोड़कर आत्मा के विकास के लिए कार्य करना प्रारंभ कर देंगे उस दिन जीवन का उद्धार हो जायेगा -विशुद्ध सागर जी म.सा.
धमतरी। परम पूज्य विशुद्ध सागर जी म.सा. ने अपने आज के प्रवचन में फरमाया कि एक खिलता हुआ फूल मानव से कहता है मेरी तरह तुम भी खिलना, मुस्काना और महक फैलाना सीखो। ये मानव तन बहुत ही अनमोल है इसे व्यर्थ नहीं करना चाहिए। अगर इस भव में हम अच्छे कार्य करेंगे तो आने वाला भव सुधर जायेगा। इस भव में बहुत सी बाधाएं भी आएगी किंतु उनसे डर कर नही लड़कर अपने आत्मा को विकास के मार्ग पर ले जाना है। अगर हमने अपने जीवन को नेक राह पर आगे बढ़ा लिया, अगर हमने आत्मा के विकास का लक्ष्य प्राप्त कर लिया तो निश्चित ही एक दिन हमारी आत्मा भी गगन में ध्रुवतारा बनकर चमकेगी। इसके लिए जरूरत है की हमारी आत्मा का परमात्मा से नि:स्वार्थ प्रीत हो। चाहे जीवन में कैसी भी परिस्थिति आ जाए फुल कभी भी मुस्कुराना और महकाना नही छोड़ता। वैसे ही हमे भी फूल के प्रति प्रमोद भाव लाते हुए अपने जीवन को आनंदित और सुवासित करना है। ताकि प्रत्येक परिस्थिति में हम अनुकूल रह सके। हमे एक चिंतन करना है की हम सत्य को जानते है सत्य को मानते है पर क्या सत्य को जीवन में लाने का प्रयास करते है। अगर किसी फूल में खुशबू न हो तो हम अधिक देर तक उसे अपने पास नही रखते उसी प्रकार जिसके जीवन में प्रतिकूल समय चल रहा हो हम उससे दूर भागने का प्रयास करते है। उस समय ऐसा विचार नहीं आता की अगर आज परिस्थिति प्रतिकूल है तो कल अनुकूल भी हो सकता है। क्योंकि समय का चक्र हमेशा चलते रहता है। और परिस्थितियां भी बदलते रहती है। जब तक हमारे मन में दूसरो के गुणों के प्रति अहोभाव नही आयेगा तब तक हमारे जीवन में प्रमोदभाव नही आ सकता। जब तक हमारा कार्य दिखावे के लिए होगा तब तक वह कार्य हमारे पाप बंध का कारण बनेगा। जिस दिन हम दिखावा छोड़कर आत्मा के विकास के लिए कार्य करना प्रारंभ कर देंगे उस दिन जीवन का उद्धार हो जायेगा। परमात्मा के पास पहुंचते ही हमारा मन प्रमोदभाव से भर जाना चाहिए। परमात्मा के गुणों को देखकर अपनी आत्मा का ध्यान करते हुए अपने भविष्य को देखना चाहिए और विचार करना चाहिए। परमात्मा का जो भूतकाल था वह मेरी आत्मा का वर्तमान काल है। और जो परमात्मा का वर्तमान है वह मेरा भविष्य हो सकता है। बस आवश्यकता है परमात्मा के उन गुणों को देखने और उसे जीवन में लाने की। जिसके कारण वो आत्मा से परमात्मा बन गए। परमात्मा संसार की समाप्ति के लिए अपना समय देते है और हम संसार की वृद्धि के लिए अपना समय देते है। इसी कारण हमारी आत्मा का आजतक विकास नहीं हो पाया।
तपस्वियों का किया गया सम्मान
चातुर्मास के तहत तप तपस्याओं का दौर जारी है। जिसके तहत आज तपस्या के क्रम में राहुल पारख पिता कुशल पारख 35 उपवास, ऋषभ गोलछा पिता किशोर गोलछा 34 उपवास, यश छाजेड़ पिता दिलीप छाजेड़ 14 का श्रीसंघ की ओर से स्वागत सम्मान किया गया।