हमारी तृष्णा, इच्छा, भावना, कामना, वासना ने आत्मा की चमक को समाप्त कर दिया है -परम पूज्य विशुद्ध सागर जी म.सा.
ईतवारी बाजार स्थित पाश्र्वनाथ जिनालय में चातुर्मास के तहत जारी है प्रवचन
प्रायश्चित अन्त:करण से हो तो वह भव भव के विकारो को भी समाप्त कर सकती है
धमतरी । ईतवारी बाजार स्थित पाश्र्वनाथ जिनालय में परम पूज्य विशुद्ध सागर जी म.सा. द्वारा चातुर्मास के तहत प्रवचन दिया जा रहा है। जिसके तहत आज उन्होने कहा कि हमने पर के लिए अपना अस्तित्व समाप्त कर दिया है। जैसे हम आग में कुछ डालकर आग समाप्त कर देते है उसी प्रकार अपने अस्तित्व में पर को डालकर अस्तित्व समाप्त कर रहे है। हमने पर की भावना से पर के लिए अपने अस्तित्व को गौण कर दिया है। हमारी तृष्णा, इच्छा, भावना, कामना, वासना ने आत्मा की चमक को समाप्त कर दिया है। हमे चिंतन करना है हम पूर्णानंद आनंदनंदी है फिर भी इस देह में फंस गये है। जिस प्रकार किसी को फांसी पर लटका दिया जाए तो उसका जीवन समाप्त हो जाता है। उसी प्रकार हम इस जीवन में शरीर में फंसकर जीवन समाप्त कर रहे है। हम चन्द्रमा जैसे शीतल आत्मा को भूला चुके है। इस जीवन में हमने अनन्त पाप किये है लेकिन इन पापो का प्रायश्चित करना भी भूल जाते है। चिंतन करे हम इस मैली मन रुपी चादर को ओढ़कर परमात्मा के समक्ष जाएंगे इस मार्ग में हमने मोक्ष के लिए क्या किया है। हम जब परमात्मा के समक्ष आये तो अपने सारे दोष देखना है जिसके कारण सिद्ध आत्मा आगे नहीं बढ़ पा रही है। ज्ञानी भगवन्त कहते है कि प्रायश्चित अन्त:करण से हो तो वह भव भव के विकारो को भी समाप्त कर सकती है। परमात्मा के माध्यम से हम स्वयं को देख सकते है। स्वयं को देखकर स्वयं को स्थिर कर सकते है। चिंतन करे क्या हम अपने दोषो के प्रायश्चित के लिए तैयार है। हमने अपने मन को दोषो से सिंचित कर रखा है। अब हमे इन दोषो से दूरी बनाने के लिए ज्ञानी भगवन्त के बताये सूत्रों के माध्यम से आगे बढऩा है। हम अनेक बार व्यक्ति, वस्तु व संसार के लिए रोए है लेकिन इन्ही कारणों से हम परमात्मा को नहीं प्राप्त कर पा रहे है। दूखी होन के लिए आंसु बहुत गिराए है अब सुखी होने के लिए आंसु गिराए। भावो को सिंचित करने के लिए आंसु गिराए। भूतकाल को देखते हुए यह सोचना है कि भविष्य में हमे यह गलती नहीं करना है।