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बताई गई बात भले ही सत्य हो लेकिन बताने वाले में बुराई हो तो वह भी निंदा है – परम पूज्य श्री विशुद्ध सागर जी म. सा.

ईतवारी बाजार स्थित पाश्र्वनाथ जिनालय में चातुर्मास के तहत दिया जा रहा है प्रवचन

सेवा का सम्मान वस्तु या सामान द्वारा नहीं किया जा सकता बल्कि भावों से सेवा की अनुमोदना की जा सकती है


धमतरी। उपाध्याय प्रवर अध्यात्म योगी परम पूज्य महेंद्र सागर जी म. सा. युवा मनीषी परम पूज्य मनीष सागर जी म. सा. के शिष्य रत्न युवा संत परम पूज्य श्री विशुद्ध सागर जी म. सा. आदी ठाणा 3 द्वारा चातुर्मास के तहत ईतवारी बाजार स्थित पाश्र्वनाथ जिनालय में प्रवचन दिया जा रहा है इसी कड़ी में आज परम पूज्य श्री विशुद्ध सागर जी म. सा. ने कहा कि भक्ति निस्वार्थ होनी चाहिए। निंदा ऐसी मिठाई है जिसका हर बार स्वाद व फ्लेवर अलग होता है। हमे किसी भी जीव की निंदा नहीं करनी चाहिए। कई बार किसी की सच्ची बात बताये तो वह भी निंदा होती है। बताई गई बात भले ही सत्य हो लेकिन बताने वाले में बुराई हो तो वह भी निंदा है। सत्य बात प्रमाणित न तो सत्य भी निंदा कहलाती है। सही बोलते हुए हमे अपना अन्त:करण कैसा है यह चिंतन करना चाहिए। सही बोलते हुए यदि हम गलत है तो न बोले। निंदा का कोई प्रायश्चित नहीं होता, जब निंदा अनेक लोगो के सामने की जाए तो पता नहीं निंदा कहा तक पहुंचेंगी। ऐसे में गुरु महाराज के सामने प्रायश्चित करें तो भी प्रायश्चित नहीं होता। क्योंकि निंदा से व्यक्ति की खराब हुई छवि नहीं बदल सकती। वास्तव में वास्तविकता से होते हुए हम कहां जा रहे है इस पर विचार करें। निंदा के पाप से हम मुक्त नहीं हो सकते। इस पाप से मुक्त होने मर्यादा व लोक स्वरुप का अनुशरण करना पड़ेगा। त्याग व बलिदान लोगो को जुडऩे का भाव पैदा करता है। निंदा करना लोक विरुद्ध कार्य है। निंदा करने से लोक बिगड़ता है और ज्यादा शोषण करने से परलोक बिगड़ता है। लोक विरुद्ध कार्य से मुक्त होना पड़े ऐसा कार्य ही न करें। मंजिल पाने के लिए अनेक सहयोगियों की आवश्यकता पड़ती है। सहयोगियों के सहयोग का अनुशरण करना चाहिए। सबकों एक दूसरे के विकास के लिए मिल जाना चाहिए। सेवा करने वाले अनेक आत्माए भव से मुक्त हो चुकी है। जन्म से व्यवस्था कुछ भी हो भाव और प्रयास सही होना चाहिए। प्रवचन के दौरान परम पूज्य श्री विशुद्ध सागर जी म. सा. ने चातुर्मास के दौरान विभिन्न आयोजनों में सहयोगियों के सहयोग के लिए किये गये सम्मान की अनुमोदना की गई। और कहा कि सेवा का सम्मान वस्तु या सामान द्वारा नहीं किया जा सकता। बल्कि भावों से सेवा की अनुमोदना की जा सकती है।

Ashish Kumar Jain

Editor In Chief Sankalp Bharat News

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