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जहां स्वार्थ होता है वहां प्रेम, सामंजस्य, न्याय, नीति, धर्म नहीं होता – परम पूज्य श्री विशुद्ध सागर जी म. सा.

चातुर्मास के पश्चात जैन गुरुओं द्वारा विहार प्रारंभ, आज गुजराती कॉलोनी में हुआ प्रवचन

धमतरी। चातुर्मास के पश्चात जैन गुरुओं द्वारा विहार प्रारंभ कर दिया जाता है। इसके पश्चात आज श्री पुसालाल भवंरलाल बैद गुजराती कॉलोनी निवास में उपाध्याय प्रवर अध्यात्म योगी परम पूज्य महेंद्र सागर जी म.सा. युवा मनीषी परम पूज्य मनीष सागर जी म. सा. के शिष्य रत्न युवा संत परम पूज्य श्री विशुद्ध सागर जी म. सा.ने प्रवचन देते हुए कहा कि परिवर्तन का क्रम प्रारंभ हो चुका है। भविष्य में जाने वाले को अपना भूतकाल अच्छा लगता है। भूतकाल में वह देखे जिससे हमारा भविष्य प्रशस्त्र हो जाए। भूतकाल में हम किसी की गलती अनुचित व्यवहार को हम याद करते है तो हम पीड़ा देती है। इस परिवर्तन की बेला में हमे पुनरावर्तन नहीं करना है। विचार शून्य व्यक्ति मूर्दा होता है जीवित व्यक्ति हमेशा विचारधीन रहता है भले ही वह उस विचार को समझ न पाये। कई लोगों की जीवा बोलती है जीवन नहीं वहीं कुछ लोगो का जीवन बोलता है जीवा नहीं। जीवा बोल जाती है लेकिन हम खुद उसे नहीं करते तो भला हमारे बोलने से दूसरा वह कार्य कैसे करेंगा। उन्होने आगे तीन पायदान बताया जिसमें पहला पायदान स्वार्थ वृत्ति है। स्वार्थ अर्थात् मै यह इंसान को जानवर बना देता है। स्वार्थ में मैं हावी रहता है। स्वार्थ में हम सोचते है कि हर चींज हमे ही मिले। स्वार्थ में हम यही सोचते है कि मेरा हर काम किसी प्रकार से हो जाए। स्वार्थ हमे दुख देता है इसलिए विचार करें कि हम स्वार्थ में सुखी ज्यादा है दुखी? जहां स्वार्थ होता है वहां प्रेम सामंजस्य नहीं हो सकता है। स्वार्थ में न्याय, नीति, धर्म नहीं होता है। दूसरा पायदान परार्थ है। परार्थ अर्थात् दूसरे के लिए कार्य करना। दूसरों के प्रति अच्छा भाव, दूसरो का भला सोचना होता है। अनुभव से बढ़कर कोई दूसरा सत्य नहीं हो सकता है। हर व्यक्ति दूसरे का हित सोचे तो कितना अच्छा होगा। यह कभी न सोचे कि दूसरों का भला करने से मेरा कुछ चला जाएगा। यह सोचे कि उसका ही उसको लौटा रहे है। जो चला जाए वह मेरा नहीं है। और जो मेरा है वो लौटकर मुझे ही मिलेगा। तीसरा पायदान है परमार्थ। परमार्थ अपनी आत्मा के लिए होता है। दिन के 24 घंटे में से सिर्फ 1 घंटा परमार्थ के लिए निकालना है। यदि एक दिन मात्र 4 प्रतिशत समय हम देते है तो सहजता से जीवन की गाड़ी को मोक्ष की मार्ग की ओर बढ़ा सकते है। चिंतन करें हमे परिवर्तन करना है पुनरावर्तन नहीं।

Ashish Kumar Jain

Editor In Chief Sankalp Bharat News

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