बढ़ती मंहगाई के बीच, दिन रात बीड़ी मजदूरी करने पर हाथ आते है चंद रुपये
बीड़ी बनाकर जीवन यापन करना हो रहा मुश्किल
बीड़ी मजदूरों का भविष्य अंधकारमय, लगातार घटती जा रही बीड़ी बनाने वालों की संख्या
धमतरी। धमतरी जिले सहित प्रदेश भर में साल दर साल बीड़ी बनाने वालों की संख्या घटती जा रही है। इसका कारण दिन रात जी तोड़ मेहनत करने के बाद भी मामूली मेहताना मिलना है। इससे इस मंहगाई के जमाने में जीवन यापन तो दूर की बात दैनिक उपयोग की वस्तुएं खरीद पाना भी मुश्किल है। ऐसे में अब सिर्फ पुराने बुजुर्ग व कुछ महिलाएं ही घर बैठक आय के जरिये के रुप में बीड़ी बना रहे है। जबकि युवा पीढ़ी इस परम्परागत कार्य से तौबा कर रहे है। इसलिए जिले में बीड़ी का उत्पादन लगातार घटता जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि पहले जिले के हजारों परिवार साथ मिलकर बीड़ी बनाते थे। यहां महिलायें बच्चों के साथ ही बुजुर्गो और पुरुषो का भी मुख्य कार्य हुआ करता था। लगभग 30-35 वर्ष पहले जब मंहगाई नहीं थी। बीड़ी बनाकर भी घर आसानी से चलता था। लेकिन अब हालात बदल चुके है। न तो बीड़ी बनाने से घर चल पाता है और न ही बीडी बनाने में लोगो की रुचि है। अब सिर्फ वही बीड़ी बना रहे है जो कि घर में रहकर कुछ पैसे कमाना चाह रहे है। उनमें भी पुराने लोग ही है।
सुधरी आर्थिक स्थिति इसलिए घटे बीड़ी मजदूर
बीड़ी मजदूरों की घटती संख्या का एक और मुख्य कारण यह है कि पहले लोग उतने शिक्षित नहीं थे। औ न ही उस दौरान व्यापार या रोजगार के इतने अवसर थे अब हालात बदल चुके है। पुराने बीडी मजदूरों की आर्थिक स्थिति सुधर चुकी है। उनके बच्चे, व्यापार नौकरी आदि करने लगे जिसमें बीड़ी मजदूरी से कई गुणा अधिक आय है। इसलिए बीड़ी मजदूर अब ज्यादातार पुराने लोग ही रह गये है। उनके इस कार्य को युवा पीढ़ी नहीं कर रहे है।
आती है कई प्रकार की शारीरिक परेशानी
बीड़ी बनाने के लिए दिन रात मेहनत करनी पड़ती है। तब कंही जाकर वतर्मान में 100-120 रुपये ही प्रति व्यक्ति द्वारा कमाया जा सकता है। बता दे कि बीड़ी बनाने के लिए ठेकेदार या कंपनी द्वारा दिये गये पत्ता, तम्बाकु, धागा पर्याप्त नहीं होता इसलिए मजदूरों को अलग से उक्त सामान डालना पड़ता है। इसके बाद यदि व्यक्ति दिन भर लगातार बीड़ी बनाये तो हजार बीड़ी ही बनाया जा सकता है। जिसमें से अतिरिक्त खर्चा निकाल दे तो लगभग 100 रुपये बचता है। इतनी रकम कमाने मजदूर दिन रात बैठकर बीड़ी बनाता है जिससे एक समय के बाद मजदूरों के पीठ व कमर में दर्द सहित अन्य परेशानियां आती है। वहीं जीवन, पर्यन्त तम्बाकु के सम्पर्क में रखने से मजदूरों में कई अन्य बीमारियों का खतरा रहता है। लगातार दिन भर बीड़ी बनाने से भी आंखे जल्द कमजोर हो जाती है।
बीड़ी कामगारों के लिए है कई योजनाएं
सरकार द्वारा अन्य कामगारों की तरह ही बीड़ी कामगारों के बेहतरी के लिए कई योजनाएं चला रही है। जिसके तहत प्रसुति लाभ परिवार नियोजन, स्वास्थ्य जांच व उपचार, कैंसर, किडनी, हृदय रोग आदि का उपचार आवास सुविधा, पेंशन आदि शामिल है। लेकिन उक्त सुविधायें तभी मिलती है तब बीड़ी कामगार शासन द्वारा पंजीकृत हो और रजिस्टर्ड कंपनी में एक निर्धारित अवधि तक बीड़ी बनाता हो। बता दे कि बांसपारा में बीड़ी कामगार कल्याण निधि औषधालय भी है। लेकिन विंडम्बना है कि हजारों की संख्या में मजदूर होने के बाद भी योजनाओं और सुविधों का लाभ अधिकांश बीड़ी कामगारो को नहीं मिल पाता।
घटा बीड़ी का क्रेज
बीड़ी मजदूरों की घटती संख्या का कारण यह भी है कि पिछले कुछ सालों में बीड़ी की तुलना में सिगरेट पीने वालों की संख्या तेजी से बढ़ी है। आजकल युवा एक रुपये की बीड़ी पीने से बेहतर 8 लेकर 25 रुपये तक के सिगरेट पीना पसंद करते है। आजकल लोग सिगरेट के धुएं में हजारों उड़ाने से भी परहेज नहीं करते. सिगरेट फैक्टरियों में बनाया जाता है। जो कि चंद मिनटो में हजारों सिगरेट तैयार हो जाता है, लेकिन बीड़ी हैंड मेड होता है आज तक बीड़ी को हाथो से बनाया जा रहा है। और बीड़ी के डिमांड घटने से उसके उत्पादन और मजदूरों की संख्या भी कम हुई है।