जिन शासन में कोई भी अनुष्ठान शरीर की पुष्टि के लिए नहीं बल्कि आत्मा के विकास के लिए है – परम पूज्य प्रशम सागर जी म.सा.

धमतरी। परम पूज्य उपाध्याय प्रवर अध्यात्मयोगी महेंद्र सागर जी महाराज साहेब परम पूज्य उपाध्याय प्रवर युवामनीषी स्वाध्याय प्रेमी मनीष सागर जी महाराज साहेब के सुशिष्य परम पूज्य प्रशम सागर जी महाराज साहेब परम पूज्य योगवर्धन जी महाराज साहेब श्री पाश्र्वनाथ जिनालय इतवारी बाजार धमतरी में विराजमान है। परम पूज्य प्रशम सागर जी महाराज साहेब ने प्रवचन के माध्यम से फरमाया कि जीवन का कारवां खत्म होने से पहले जीवन को सफल बनाना है। अवसर चूकने के बाद कोई साथ नहीं रहता। तेरे कदम साहस के साथ जब सफलता की ओर बढ़ेंगे तो निश्चित ही सफलता प्राप्त होगी। चातुर्मास काल में जिनवाणी के माध्यम से आत्मा को सजाने का प्रयास करना है। आत्मा से दुर्गुणों को निकालकर सदगुणों से सजाने का प्रयास करना है। जीवन में अगर मन कमजोर हो जाए तो पूरा शरीर उससे प्रभावित हो जाता है। किंतु फिर भी हम शरीर को मजबूत करने जी रहे है जबकि ज्ञानियों का कहना है कि हमें मन को मजबूत करने का प्रयास करना चाहिए। परमात्मा के वाणी की यह विशेषता है कि इससे शरीर का नहीं वरन आत्मा के विकास का मार्ग बताया गया है। जिन शासन में कोई भी अनुष्ठान शरीर की पुष्टि के लिए नहीं है बल्कि आत्मा के विकास के लिए अर्थात सिद्ध बुद्ध और मुक्त होने के लिए है। 22 परिषह में छठवां है वस्त्र परिषह – वस्त्र संबंधी सहनशीलता बढ़ाना। हमें जीवन में वस्त्रों के लिए विशेष मोह नहीं रखना चाहिए। वस्त्रों के प्रति राग द्वेष का भाव नहीं होना चाहिए। वस्त्र के कारण कभी भी आत्मा का पतन नहीं होना चाहिए। हम जीवन में शरीर को सुंदर बनाने के लिए वस्त्र के प्राथमिकता देते है जबकि ज्ञानियों कहना है कि आत्मा को सजाने के लिए साधना रूपी वस्त्र को प्राथमिकता देनी चाहिए। ज्ञानीजन शरीर को भी आत्मा का वस्त्र मानते है। जो समय समय पर बदलते रहता है। जीवन में मिले हुए पुण्य को पानी की तरह बहा देते है। पिछले भव के कर्मों के कारण हमें दिवाली जैसा पुण्य मिला है। किंतु उसका भोग करते हुए हम पाप का बंध अधिक करते है। परिणाम स्वरूप आने वाले भव में ये हमारा दीवाला निकाल देगा। सातवां परिषह है अप्रिय परिस्थिति परिषह- कभी कभी जीवन में न चाहे वैसी परिस्थिति आ जाने पर भी हमे अनुकूल रहना चाहिए।