शहर में कानफोडू़ आवाज लोगों की छीन रही श्रवण शक्ति
बढ़ते ध्वनि प्रदूषण से स्वास्थ्य पर पड़ सकता है विपरीत प्रभाव, सामने आ सकते है दूरगामी दुष्परिणाम
40 से 60 डेसीबल तक ही ध्वनि ही व्यक्ति की सेहत के लिए अच्छा, ध्वनि लिमिट का नहीं होता पालन
धमतरी । आधुनिकता, शहरीकरण बढ़ती आबादी व बढ़ती वाहनों की संख्या व तीव्र ध्वनि वाले डीजे, बाजा के कारण लगातार शहरों में शोर शराबा बढ़ते ही जा रहा है। लोग इस शोर शराबे को इग्नोर कर देते है, लेकिन इसके निकट व दूरगामी दुष्परिणाम सामने आ सकते है। बाउजूद इसके लोग इस बढ़ते समस्या को नजर अंदाज कर रहे है। मिली जानकारी के अनुसार किसी भी व्यक्ति के 40 से 60 डेसीबल ध्वनि ही उत्तम होता है। इससे अधिक ध्वनि सुनने से व्यक्ति में कई प्रकार शारीरिक व मानसिक विकार उत्पन्न हो सकते है। व्यक्ति में अत्याधिक तेज ध्वनि से तनाव चिड़ाचिड़ापन व क्रोध के लक्षण उत्पन्न होने लगते है। इसके अतिरिक्त व्यक्ति को भौतिक तकलीफ होती है। इसके शीघ्रगामी व दूरगामी परिणाम सामने आते है. व्यक्ति को चक्कर आना, चिड़चिड़ापन, क्रोध होना तत्कालिक परिणाम है। वहीं कान की श्रवण शक्ति समाप्त होना हार्ट से संबधित रोग ध्वनि प्रदूषण के दूरगामी परिणाम हो सकते है। चिकित्सकों के अनुसार तेज ध्वनि हमे पूर्णत: बहरा बना सकती है। इसलिए जहां ध्वनि काफी तेज होती है। वहीं से हमे दूर हो जाना चाहिए। क्योंकि हमारे कान के पर्दे काफी संवेदनशील होते है।
ये है निर्धारित ध्वनि मानक स्तर
विशेषज्ञो के अनुसार रिहायशी इलाकों, वणिज्यिक स्थानों, औद्योगिक क्षेत्रो के लिए दिन व रात के लिए अलग-अलग मानक तय किये गये है। रिहायशी इलाकों में 40 से 50 डेसीबल, बाजार में 55 से 65 डेसीबल, औद्योगिक क्षेत्र में दिन में 75 व रात्रि 70 डेसीबल अधिकतम मानक स्तर निर्धारित किया गया है। लेकिन उक्त मानक स्तर का ज्यादातर जिले में पालन नहीं होता। ऐसे में लगातार ध्वनि प्रदूषण बढ़ते जा रहा है। वर्तमान में भी शादियों व अन्य समारोह में ध्वनि प्रदूषण हो रहा है। लेकिन इस ओर रोक व कार्रवाई पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है।