35 साल बाद मां विंध्यवासिनी ने छोड़ा चोला, नया स्वरुप में भक्तों दे रही दर्शन
रविवार को सुबह करीब 11 माता ने छोड़ा चोला, मंदिर के पुजारियों द्वारा किया जायेगा गंगा में विसर्जित
धमतरी। विंध्यवासिनी मंदिर के पुजारियों द्वारा करीब 60 साल पहले माता को चांदी से जड़े चांदी रंग का चोला पहनाया गया था, इस चोले को करीब 35 साल पहले माता से छोड़ दिया, जिसके बाद उन्हें गहरे सिंदूरी रंग का चोला पहनाया गया। बीते रविवार को सुबह करीब 11 बजे भक्तों की भीड़ माता के दर्शन के लिये उमड़ी थी, इसी बीच थोड़ी हलचल के साथ माता अचानक अपना चोला छोड़कर मूल रुप में आ गई, जिससे भक्तों में खलबली मच गई। माता के मूल रुप में आने के बाद तत्काल सभी पुजारी एकत्रित हुए और मंदिर का पट बंद कर नया चोला पहनाने व श्रृंगार की प्रक्रिया शुरु की। करीब 6 से 7 घंटे बाद माता नये चोला में नये स्वरुप में नजर आई। बताया जा रहा कि लगभग 35 किलोग्राम वजनी माता के पुराने चोला की विधिवत पूजा अर्चना उसे गंगा नदी में विसर्जित किया जायेगा। इधर माता के नये स्वरुप के दर्शन करने मंदिर में भक्तों का तांता लगा हुआ है। मंदिर के पुजारी नारायण दुबे ने बताया कि वे लोग पीढ़ी दर पीढ़ी मां विध्यवासिनी की सेवा और पूजा अर्चना करते आ रहे है। इतिहास के अनुसार 30 से 35 साल में माता अपना चोला छोड़कर मूल रुप में आ जाती है। यह सब स्वयं मांता के ऊपर रहता है कि वह अपना चोला कब और किस समय छोड़ती है। माता के छोड़े चोला को विधिविधान पूजा अर्चना कर वह स्वयं उसे गंगा नदी में जाकर विसर्जित करेंगे। करीब 35 साल पहले माता ने अपना चोला छोड़ा था जिसे मंदिर के पुजारी उनके दादा डोमार प्रसाद दुबे दर्री वाले ने गंगा नदी ले जाकर विसर्जित किया था। रविवार को सुबह अचानक माता ने अपना चोला छोड़ दिया।