संसार में सुखी होने के लिए हम जो भी करते है वही दुख का कारण बनता है-विशुद्ध सागर जी म.सा.
धमतरी। परम पूज्य विशुद्ध सागर जी म.सा. ने अपने आज के प्रवचन में फरमाया कि इस संसार में सुखी होने के लिए हम जो भी करते है वही दुख का कारण बनता है। इसलिए हमेशा आत्मसुख को प्राप्त करने के लिए प्रयास करना चाहिए। खाना, पीना और सो जाना ये सब सब तो पशु भी करते है अगर मानव जन्म पाकर हम भी यही करते रहे तो पशु और इंसान में कोई अंतर नहीं रह जाएगा। इसीलिए मानव के भाव में हमे यह अवसर मिला है कि हम परमात्मा को याद कर सके। और उनके माध्यम से आत्मविकास की साधना कर सके। जो प्राप्त है उसका उपयोग नहीं करना ही सबसे बड़ा दोष है। जिस दिन हम यह मान लेंगे जो प्राप्त है वही पर्याप्त है उस दिन हम दोष से बच जाएंगे। पापों से दूरी बनाने के लिए स्वयं के दोष से दूर होना पड़ेगा क्योंकि दोष से परमात्मा से हमे दूर करता है। परमात्मा का शासन पाकर भी अगर हम परमात्मा के परिवार में शामिल न हो पाए तो इसका कारण हमारा दोष है। हम संसार के सतरंगी सपनो में इतना खो गए है कि अपनी आत्मा को भूल बैठे है। जब अपनी आत्मा को भूल बैठे है तो परमात्मा को कैसे पहचानेंगे।दूसरो के दोष को देखकर उससे द्वेष करके दूरी बनाना सबसे बड़ा पाप है।
इस जीवन रूपी गांव में सुख दुख रूपी धूप छाया आते जाते रहते है। जिस दिन हम अपने दोष और दूसरो के गुणों को देखना प्रारंभ कर देंगे उस दिन परमात्मा के परिवार मे अपना नंबर आ जाएगा। संसार में आकर जिस दिन हम संसार को भूल जाएंगे उस दिन हम परमात्मा के निकट आ जाएंगे। साधु संतो के चरण स्पर्श तो हम बहुत कर लिए लेकिन अब उनके आचरण को स्पर्श करके जीवन में उतारने का प्रयास करना है। अपने दोषों को पास रखना सरल है लेकिन उसे दूर करना कठिन है। जिस दिन हम अपने दोषों को दूर कर लेंगे उस दिन हम परमात्मा के निकट आ जाएंगे। हम मंदिर जाकर परमात्मा की प्रतिमा को देखते है जबकि परमात्मा प्रतिमावान निराकार स्वरूप को देखते हुए अपनी आत्मा को देखने का प्रयास करना चाहिए और विचार करना चाहिए कि मेरी और परमात्मा की आत्मा दोनों सामान है। बस मुझे जरूरत है अपनी आत्मा के दोषों को दूर करने की। जिस दिन में इस कार्य में सफल हो जाऊंगा उस दिन मैं भी परमात्मा बन जाऊंगा।