Uncategorized

करुणा भाव ही हमारी आत्मा के कर्म मल को धो सकती है – विशुद्ध सागर जी म.सा.

धमतरी। परम पूज्य विशुद्ध सागर जी म.सा. ने अपने आज के प्रवचन में फरमाया कि उम्र तो थोड़ी ही मिली थी। जिसे सोचते सोचते हमने खत्म कर लिया। अनंतकाय की अपेक्षा से मनुष्य जीवन बहुत थोडा मिला है। ऐसे छुटने वाले समय का उपयोग अपने आत्मविकास में करना है। जीवन भर न जाने मैने कितनी बार काया का श्रृंगार किया, कितना माया का भंडार मैंने भर लिया। किंतु अन्त समय में काया और माया दोनो दूर रह गई। और शरीर मिट्टी बन गया। काया की जो अकड़ है वो बदल जायेगी और जो काया का समय अर्थात जिंदगी बची है वो भी चली जायेगी। इसलिए सोचने के स्थान पर पुरुषार्थ से प्रयास करना है की आत्मा का विकास हो सके। इस जहां ने मुझे ठुकरा दिया ऐसे समय में ही परमात्मा आपने ही मुझे अपनाया। परिजनों को छोड़कर सभी ने मेरी काया के राख होने तक का भी इंतजार नही किया। और परिजनों ने राख होने के बाद उसे भी जल में बहा दिया। अर्थात इस संसार में सब केवल स्वार्थ के नाते है। अब मुझे अपनी आत्मा का परमात्मा से नि:स्वार्थ नाता जोडऩे का प्रयास करना है। ताकि इस संसार में दुबारा जन्म न लेना पड़े। जिनवाणी एक ऐसा रसायन है जो इसे स्वीकार करने वाले के जीवन में परिवर्तन ला सकता है।

आत्मा से परमात्मा बनने का सूत्र जिनवाणी के माध्यम से मिल सकता है। जिनवाणी सुनने वाले को अपनी भूमिका अर्थात आवश्यकता के स्वरूप उसे ग्रहण करने की योग्यता होनी चाहिए। हर व्यक्ति की आवश्यकता, कर्म आदि हर समय परिवर्तित होते रहता है। इसलिए हमेशा परिस्थिति अनुसार व्यवहार करना चाहिए। जिसके हृदय में करुणा का भाव होता है वो कभी किसी पर क्रोध नहीं करता। करुणा भाव होने पर हम सदा ही दूसरो का हित सोचते है। और दूसरो का हित सोचते सोचते हम स्वयं के हित का कार्य कर लेते है। इस संसार में जो भी दिन-हीन और पुण्यहीन है वो सभी करुणा के पात्र है। ऐसे लोगो पर कभी क्रोध नहीं करना चाहिए। जब आत्मा में संसार के सभी जीवों के प्रति करुणा का भाव आता है तभी तीर्थकर बनने की पात्रता मिल सकती है। करुणा भाव ही हमारी आत्मा के कर्म मल को धो सकती है, और हम आत्मा का विकास कर सकते है। परमात्मा धनवंतरी वैद्य के समान होते है। क्योंकि एक सामान्य वैद्य हमारे शरीर के रोग को मिटाता है जबकि परमात्मा अपने जिनवाणी रूपी दवा और करुणा भाव से हमारे भव भव के रोग को मिटाते है। परमात्मा महावीर ने अपने जीवन के अंतिम समय में लगातार सोलह प्रहर जीवमात्र के कल्याण के लिए देशना दिए। क्योंकि उनके मन में सभी के कल्याण की भावना थी।

श्रेयांश बोथरा ने दी भजन की प्रस्तुति, श्रीसंघ ने किया सम्मान

श्रेयांश बोथरा पिता गौतम चंद बोथरा निवासी बेरला आज गुरु दर्शन हेतु पधारे। उनके द्वारा गुरु चरणों में एक सुंदर भजन प्रस्तुत किया गया। भजन के बाद श्रीसंघ की ओर से उनका सम्मान किया गया। इस दौरान बड़ी संख्या में समाजजन उपस्थित रहे।

Ashish Kumar Jain

Editor In Chief Sankalp Bharat News

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!