अज्ञानतावश आत्मा को भूल गए है और यही अज्ञानता हमारे पाप का कारण है -विशुद्ध सागर जी म.सा.
धमतरी। परम पूज्य विशुद्ध सागर जी म.सा. ने अपने आज के प्रवचन में फरमाया कि हे चेतन ये तन नश्वर है। फिर इसका अभिमान क्यों करते हो? क्योंकि हमारा अभिमान हमे दुखी ही करता है। मिट्टी का ये पुतला हम हर दिन सुबह शाम सजाते है। हम इस तन की ऐसी चिंता करते है जैसे ये शाश्वत है। जबकि ये तन नाशवान है। हे मानव ये आत्मा अजर और अमर है। आत्मा अविनाशी है। लेकिन हम अज्ञानतावश आत्मा को भूल गए है। और यही अज्ञानता हमारे पाप का कारण है। जीवन में बचपन, यौवन और बुढ़ापा आता है फिर ढल जाता है। और ये सब इस नाशवान शरीर की अवस्था है। जबकि आत्मा का एक ही वास्तविक स्वरूप है। जो कभी नही जाता। आत्मा शुद्ध स्वरूपी है। आत्मा के इस शुद्ध स्वरूप को प्राप्त करने के लिए हमे अपना जीवन परमात्मा की भक्ति में लगाना होगा। और हो सके तो संयमी बनना चाहिए। और ये संभव न हो सके तो कम से कम साधक जरूर बनना। जिस प्रकार हम प्रतिदिन कपड़े बदलते है उसी प्रकार आत्मा भी अलग अलग शरीर रूपी कपड़े बदलती है। हमे परमात्मा का ध्यान करते हुए एक प्रश्न स्वयं से करना है को अहम? अर्थात मैं कौन हूं? और अपने ही अंदर से इसका जवाब भी आना चाहिए। सो अहम, अर्थात मै आत्मा हू। क्योंकि ज्ञानी कहते है शरीर तो बदलते रहता है लेकिन आत्मा कभी नही बदलती। परमात्मा की आत्मा और हमारी आत्मा दोनो एक समान है। बस अंतर इतना है की परमात्मा ने अपनी आत्मा के कर्म मैल को दूर करके अपनी आत्मा को शुद्ध कर लिया है। और हमारी आत्मा में अभी भी कर्म मैल लगा हुआ है इसलिए आत्मा शुद्ध नही हो पाया है। संसार के इस मोहजाल में फंसकर अपनी आत्मा के वास्तविक स्वरूप को भूल गए है। ज्ञानी कहते है संसार के नाशवान पदार्थो के राग में फंसकर हम सुख खोज रहे है इससे बड़ी मूर्खता कुछ और नहीं हो सकती। मूर्ख व्यक्ति कभी स्वयं को मूर्ख नही समझता। हमे सांसारिक संबंधों को दूर करना है और परमात्मा से अपनी आत्मा के संबंधों को मजबूत करना है। तभी आत्मा का विकास संभव है। इस संसार में सबकुछ मिट्टी का है। अंत में सबको इसी मिट्टी में मिल जाना है। और हमे इस मिट्टी का अभिमान हो गया है। हम जानते तो है की इस संसार में हमे जो कुछ भी मिला है वो सब अंत में यही छोड़कर जाना है। लेकिन इस सत्य को मानते नही है। यही कारण है की इस मिट्टी का मोह नहीं छूटता। ये संसार अस्थिर है। इस संसार में दिखने वाली वस्तु हमे दिखाई दे रही है। वास्तव में इस संसार में कुछ भी देखने लायक नही है। क्योंकि इस संसार की प्रत्येक वस्तु नाशवान है। संसार में आज जिन सुंदर वस्तुओ को देखकर हम वाह वाह करते है वही पाप कर्मों के बंध का कारण बन जाता है और भविष्य में हमारे आह आह अर्थात कष्ट का कारण बन जाता है।