भाजपा-कांग्रेस को पुन: शहरी सत्ता हासिल करने लगाना होगा ऐढ़ी चोटी का जोर
गत निगम चुनाव में भाजपा को मिली थी पहली बार हार व कांग्रेस को सत्ता सुख
चुनाव के कई महीने पहले से ही वार्डो में दावेदार बढ़ा रहे सक्रियता, योग्य उम्मीदवार चयन के लिए होंगे कई विकल्प
धमतरी। भाजपा कांग्रेस को पुन: धमतरी की शहरी सत्ता हासिल करने ऐढ़ी चोटी का जोर लगाना होगा। नगरीय निकाय चुनाव के तारीखो का ऐलान नहीं हुआ है। उसके महीनों पहले ही वार्डो में कई दावेदार सक्रियता बढ़ाने लगे है। इससे मुख्य राजनीतिक पार्टी भाजपा कांग्रेस को योग्य उम्मीदवार चयन के लिए कई विकल्प मिलेंगे। साथ ही यह बगावत का कारण भी बन सकता है।
ज्ञात हो कि गत नगरीय निकाय चुनाव के तहत साल 2019 में 24 दिसम्बर को चुनाव परिणाम आ गया था और जनवरी के पहले सप्ताह में निगम में नई सत्ता का गठन हो गया था। इस हिसाब से जल्द ही निकाय चुनाव के तारीखों के ऐलान की उम्मीद की जा सकती है। लेकिन ओबीसी जनगणना कार्य अधूरा होने के कारण चुनाव में देरी भी हो सकती है। लेकिन इससे परे वार्डो में राजनीति धीरे-धीरे गरमाने लगी है। कई दावेदार अपनी सक्रियता बढ़ा रहे है। वहीं गत चुनाव व अब तक का इतिहास देखे तो यह स्पष्ट होता है कि 2019 के निकाय चुनाव में पहली बार भाजपा सत्ता से दूर हो गई और कांग्रेस को पहली बार शहरी सत्ता का सुख मिला। गत चुनाव में शहर के 40 वार्डो में भाजपा को 17, कांग्रेस को 18, निर्दलियों को 5 वार्डो में जीत मिली थी। इसलिए दोनो ही पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था। दरअसल गत चुनाव में महापौर का चयन अप्रत्यक्ष प्रणाली से हुआ था। इसलिए महापौर सभापति चयन में पार्षदों की संख्या सबसे अहम थी। इस बार अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि क्या भाजपा सरकार निकायों में अध्यक्षों व महापौर का चुनाव प्रत्यक्ष सीधे मतदाताओं से या अप्रत्यक्ष (पार्षदों के मत) से करायेंगी। जो भी हो लेकिन वार्डो में तो चुनाव जीतना दोनो ही पार्टी के लिए आवश्यक है। पिछली गलतियों को सुधारकर आने वाले चुनाव में उतरेंगे तो निश्चित ही जीत मिलेगी।
बागी, निर्दलियों के हाथो रही सत्ता की चाबी
गत निकाय चुनाव में शहर के 40 में से 5 वार्डो में निर्दलियों ने चुनाव जीता था। 17 में भाजपा, 18 में कांग्रेस जीती थी। इस प्रकार महापौर, सभापति बनने के लिए 21 पार्षदों का समर्थन चाहिए था। कांग्रेस तीन पार्षदों को अपने पक्ष में करने में सफल रही और 21 को आकड़े तक पहुंची। वहीं भाजपा अपने बागी पार्षदों का समर्थन हासिल कर 19 की संख्या तक ही सीमित रही। इस बार भी चुनाव में बागियों व निर्दलियों की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है।
आरक्षण का इंतजार फिर खुलकर आयेंगे दावेदार
वैसे तो दावेदार वार्डो में सक्रिय हो चुके है। गणेशोत्सव में सक्रिय रहे अब नवरात्र में भी इनकी सक्रियता रहेगी। लेकिन खुलकर दावेदारी नहीं कर पा रहे है। दरअसल चुनाव में आरक्षण सबसे अहम होगा शहर के 40 वार्डो में से 20 वार्डो का परिसीमन के तहत सीमा बदलेगी। ऐसे में आरक्षण का सिस्टम भी प्रभावित होगा आरक्षण से यह स्पष्ट हो जायेगा कि किस वार्ड में कौन से कैटेगरी का प्रत्याशी चुनाव लड़ेगा। इसके बाद जोर शोर से चुनावी रंग चढ़ेगा। आरक्षण के बाद कई दावेदार आसपास के वार्डो में दावेदारी कर सकते है।