जीवन में शांति आने पर ही मुक्ति का द्वार खुल सकता है – परम पूज्य प्रशम सागर जी म.सा.

धमतरी। परम पूज्य उपाध्याय प्रवर अध्यात्मयोगी महेंद्र सागर जी महाराज साहेब परम पूज्य उपाध्याय प्रवर युवामनीषी स्वाध्याय प्रेमी मनीष सागर जी महाराज साहेब के सुशिष्य परम पूज्य प्रशम सागर जी महाराज साहेब परम पूज्य योगवर्धन जी महाराज साहेब श्री पाश्र्वनाथ जिनालय इतवारी बाजार धमतरी में विराजमान है। आज परम पूज्य प्रशम सागर जी महाराज साहेब ने प्रवचन के माध्यम से फरमाया कि उपशम भव करके अपने कर्मों का क्षय करने वाले का ही भव से बेड़ा पार होता है। राग द्वेष का उपशम करने पर ही आत्मा को शांति मिल सकती है। अगर जीवन में कोई भी कषाय रह गया तो हम चाहे जितना भी ख्याति अर्जित कर ले सब समाप्त हो जाएगा। कषाय के कारण ही नरक में भी जाना पड़ता है। जीवन में सुख पाने के लिए राग द्वेष को छोडऩा पड़ेगा। अगर द्वेष बढ़ रहा है तो स्वयं ही उसे सुलझाना होगा। सभी के साथ प्रेम और स्नेह का भाव रखना होगा। तभी आत्मा से कषाय को दूर कर सकते है। मन के सभी क्लेश को मिटाकर प्रेम सरोवर से उसे भर लेना है। जीवन में शांति आने पर ही मुक्ति का द्वार खुल सकता है। चातुर्मास का यह सुअवसर मिला है जिसमें परमात्मा की वाणी का श्रवण कर रहे है। उत्तराध्ययन सूत्र में हम अपना जीवन कैसे व्यतीत करे ये समझने का प्रयास कर रहे है। जब तक ये कषाय चलते रहता है तब तक परमात्मा की वाणी पर श्रद्धा नहीं आ सकता। इस कषाय के कारण हम सत्य से दूर होते जा रहे है। शंका होने का कारण ही कषाय है। हमें डॉक्टर की बातों पर शंका नहीं होती, क्योंकि वहां पर शरीर के प्रति मोह या सजगता रहती है। जबकि परमात्मा की बातों पर शंका करते है क्योंकि आत्मा के प्रति मोह या सजगता नहीं है। और इसका कारण ही कषाय है। अगर हम परमात्मा की पूजा करते है परमात्मा के सामने अपना मस्तक झुकाते है पर मन नहीं झुका पाते। तो इसका कारण है जीवन में कषाय चल रहा है। हम अपनी पहचान अपनी संपत्ति, साधन या सुविधा से कराते है। जबकि परमात्मा कहते है हमारी वास्तविक पहचान आत्मा से है। जीवन में दुख का कारण साधन ,सुविधा की कमी नहीं है बल्कि दुख का कारण कषाय है। जिस दिन हमें शरीर का रूप छोड़कर आत्मा का स्वरूप अच्छा लगने लगेगा उस दिन कषाय जीवन से चले जाएगा।

