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मन का मंथन करने पर भी सबसे अमूल्य रत्न प्रभु परमात्मा का साक्षत्कार किया जा सकता है – संत लोकेश 

धमतरी । श्री प्रेम प्रकाश मंडलाचार्य  सद्गुरु स्वामी टेऊँराम जी महाराज के 138 वें जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में जारी चालीहा महोत्सव के 31 वें दिन के चालीसा पाठ एवं सत्संग का आयोजन श्री प्रेम प्रकाश आश्रम में स्व.  लक्षमण दास वाधवानी के सुपुत्र आशीष एवं सुमित वाधवानी परिवार ने आयोजित किया साथ ही भंडारे का भी आयोजन किया जिसमें उपस्थित सभी भक्तों ने सत्संग का लाभ प्राप्त कर भोजन प्रसाद पाया। सत्संग में प्रेम प्रकाश आश्रम के संत लोकेश जी ने मन की समुद्र से तुलना कर बताया कि मन एवं समुद्र में कोई फर्क नहीं है समुद्र में निरन्तर लहरें चलती रहती हैं वैसे ही मन में भी अच्छे बुरे विचारों की भावनाओं की आशाओं निराशाओं की लहरें निरन्तर चलती रहती हैं। समुद्र के सामान ही मन में भी तूफ़ान उठते रहते हैं जैसे समुद्र का मंथन करके 14 रत्नों की प्राप्ति हुई थी जिसमें विष, ऐरावत हाथी, कामधेनु गाय, माता लक्ष्मी, कल्पवृक्ष, धनवंतरी, अमृत आदि प्रमुख हैं उसी प्रकार मन का मंथन करने पर भी सबसे अमूल्य रत्न प्रभु परमात्मा का साक्षत्कार किया जा सकता है मन के मंथन के लिए समर्थ सद्गुरु की आवश्यकता होती है इस कला को आचार्य सद्गुरु स्वामी टेऊँराम जी महाराज ने अपने गुरु स्वामी आसूराम जी महाराज से प्राप्त कर आतम ज्ञान प्राप्त किया।

Ashish Kumar Jain

Editor In Chief Sankalp Bharat News

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