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शिक्षा ही हमारे जीवन की वास्तविक पूंजी है -परम पूज्य मनीष सागर जी महाराज साहेब


धमतरी। अध्यात्म योगी उपाध्याय प्रवर परम पूज्य महेंद्र सागर जी महाराज साहेब उपाध्याय प्रवर युवा मनीषी परम पूज्य मनीष सागर जी महाराज साहेब आदि ठाना परम पूज्य निपूर्णा श्री जी महाराज साहेब की शिष्या परम पूज्य हंसकीर्ति श्री जी महाराज साहेब आदि ठाना श्री पाश्र्वनाथ जिनालय में विराजमान है। युवा मनीषी उपाध्याय प्रवर परम पूज्य मनीष सागर जी महाराज साहेब ने आज के प्रवचन के माध्यम से फरमाया कि भगवान महावीर के शासन काल में आप हम सब नवपद ओली की बेला में नवपदों को समझने का प्रयास कर रहे है। हमें नवपदों की केवल आराधना ही नहीं करना है बल्कि इन 9 पदों के गुणों को अपने जीवन में उतारने का प्रयास भी करना है। एक परिवार में भी अनेक विचारधाराएं हो सकती है। लेकिन अगर सामंजस्य हो तो सुख और शांति पूर्वक जीवन व्यतीत हो सकता है। सभी का यह सिद्धांत होना चाहिए कि अगर सम्मान दोगे तो सम्मान मिलेगा। यही विचार सामंजस्य स्थापित करने में सहायता करता है। अगर हम एक दिन की गणना घंटे में करे तो केवल 24 घंटे ही लगता है लेकिन उसे मिनट में देखे तो 1440 मिनट होता है और उसे सेकंड में देखे लगभग 86400 सेकंड होते है। समय उतना ही है पर समझने का नजरिया अलग अलग होता है। प्रमादी व्यक्ति बीते समय की घंटों में गणना करके उसे भूल जाता है जबकि आत्मविकास के प्रति जागरूक व्यक्ति विचार करता है मेरा लाखों सेकंड व्यर्थ चला गया। अर्थात हमारा विचार ही आत्मा के विकास या पतन का कारण बनता है। जैसे टंकी में गंदा पानी हो लेकिन अगर नल में छन्नी लगा दिया जाए तो पानी साफ आयेगा। उसी प्रकार अगर अपने जीवन रूपी नल में जिनवाणी रूपी छन्नी लगा दे तो संस्कार रूपी साफ जल प्राप्त किया जा सकता है । हमें अपने जीवन में पूर्व के कर्म और वर्तमान की अज्ञानता से लडऩा है। पूर्व के कर्मों के आधार पर वर्तमान जीवन मिला है। उसमें सामंजस्य स्थापित करते हुए आने वाले भव के लिए आत्मविकास का प्रयास करना है। इसके लिए वर्तमान की अज्ञानता को दूर करने का प्रयास करना है। अच्छे संस्कार की शिक्षा बच्चों को गर्भ से ही मिलना प्रारंभ हो जाना चाहिए। वास्तव में गर्भकाल बच्चे के साथ साथ माता पिता के लिए भी साधना काल होता है। यह साधनाकाल बच्चे के पूरे जीवन की दशा और दिशा तय करता है। पहले एक शिक्षक ही सभी विषय का ज्ञान अकेले देते थे। आज अलग अलग विषय के लिए शिक्षक भी अलग होते है। आज कार का जमाना है संस्कार का नहीं। आज हर घर में कार मिल जाएगा, लेकिन संस्कार मिलना दुर्लभ हो गया है। मानव जीवन में चार प्रकार की इच्छाएं होती है आहार, भय, मैथुन और परिग्रह। इन इच्छाओं को पूरा करते करते जीवन निकल जाता है लेकिन ये इच्छाएं पूरी नहीं हो पाती। जीवन में सुख और शांति पाने के लिए आंतरिक शिक्षा की आवश्यकता होती है। आंतरिक शिक्षा हमें संस्कारवान कहलाता है। आज हम जीवन में धन कमाने के चक्कर में शिष्टाचार, संस्कार, विनय आदि गुणों को गवां देते है। इसलिए जीवन का पतन हो जाता है। और परिणाम स्वरूप आत्मा का विकास रुक जाता है। लौकिक शिक्षा अर्थात सांसारिक शिक्षा हमें तन और धन के साथ जीना सिखा देता है जबकि अलौकिक शिक्षा अर्थात आध्यात्मिक शिक्षा हमें मन के साथ जीना सिखाता है। और मन के साथ जीना सीख लेने वाला व्यक्ति कभी पतन की राह में नहीं जाता। शिक्षा ही हमारे जीवन की वास्तविक पूंजी है। यही हमे जीवन का लक्ष्य दिला सकता है। छह कर्तव्य जिनेंद्र पूजा अर्थात परमात्मा की पूजा, गुरु उपासना, स्वाध्याय , तप, दान, संयम का पालन प्रत्येक श्रावक को करना चाहिए।

Ashish Kumar Jain

Editor In Chief Sankalp Bharat News

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